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________________ १७२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विहार एवं धर्म प्रचार किया और अनेक संघ यात्राओं का नेतृत्व किया। आपने सं० १३८१ में पाटण में शान्तिनाथ चैत्य की प्रतिष्ठापना कराई। आप एक उच्चकोटि के लेखक थे। आपकी प्रसिद्ध रचना 'चैत्य वन्दना कुलक वृत्ति' है। यह जिनदत्त कृत चैत्य वन्दना पर बृहद् वृत्ति है । आपकी अन्य रचनाओं में श्री जिनचन्द्रसरि चतुःसप्ततिका है जिसमें आचार्य जिनचन्द्र की प्राकृत भाषा में वंदना की गई है। आपने अनेक स्तोत्र और स्तवनवन्दन आदि लिखे हैं जैसे 'फलोधीपार्श्वस्तोत्रम्', सिद्धक्षेत्र आदिजिनस्तवनम् आदि । ये रचनायें प्रायः संस्कृत या प्राकृत में हैं। पार्श्वनाथस्तोत्रम्, स्तम्भनपार्श्वस्तोत्रम्, शेरीषकालंकारपाश्र्वस्तोत्रम्' शान्तिजिन-स्तवनम् आदि आपके अन्य स्तवन-स्तोत्रादि हैं। इस प्रकार आप संस्कृत, प्राकृत और देश्यभाषाओं के प्रकांड विद्वान् तथा महान् लेखक थे। प्रभावशाली धर्माचार्य और संयम के महान साधक साधु थे। अतः आपको दादा की उपाधि प्राप्त हई थी। आपका स्वर्गवास सं० १३८९ के फाल्गुन में हुआ। आपकी मरुगुर्जर में लिखी किसी प्रसिद्ध रचना का पता तो नहीं है किन्तु आपने तत्कालीन धार्मिक एवं साहित्यिक जगत को दूर तक प्रभावित किया था अतः आपका परिचय जैन साहित्य ग्रन्थ में होना आवश्यक समझकर प्रस्तुत किया गया है। जिनपद्मसूरि-आप खरतरगच्छ के आचार्य जिनकुशलसूरि के शिष्य थे। मरुगुर्जर में लिखी आपकी दो रचनाओं-(१) थूलिभदफाग और (२) श्री शत्रुञ्जय चतुर्विंशति स्तवनम्' गाथा २६ का विवरण आगे दिया जा रहा है। प्रथम रचना सिरिथूलिभद्दफागु २७ पद्यों की छोटी रचना होते हुए भी काव्यत्व की दृष्टि से सरस और महत्वपूर्ण है। यह रचना सं० १३९० से सं० १४०० के बीच हुई होगी। यह फागु 'प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह' (सं० ए० एन० जानी) और 'प्राचीन फागु संग्रह' (सं० भोगीलाल सांडेसरा) में प्रकाशित है। श्री भोगीलाल ने इसका रचनाकाल सं० १३९० से १४०० के बीच लिखा है। श्री देसाई, श्री नाहटा और ए० एन० जानी ने भी इसका रचना काल वही बताया है, केवल महापंडित राहुल इसे वि० सं० १२५७ की रचना बताते हैं। श्री जिनपद्मसूरि का जन्म श्री लक्ष्मीधर की पत्नी कीका की कुक्षि से सं० १३८२ में होना प्रायः सभी विद्वानों को मान्य है । आपको आचार्य पद सं० १३९० में और आपका देहावसान सं० १४०० में हआ था, अतः यह रचना सं० १३९० से १४०० के बीच ही किसी समय की गई होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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