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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य १६९ 'जिनचन्द्रसूरिरेलआ' की प्रारम्भिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैंजिनप्रबोध सूरिराय पट्टिवर कमल दिवायरु पयडिउ सुद्ध जय धम्मु । देवराज कुलि गयण चंदुसिरि कामल पउमिणि कुखिहि हंसु उपन्नु ॥१॥ ___ इसकी अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार हैं :'सिरि जिणचंद सरि जग पहाण जे गायहि भाविहि भगतिहि चितह रंगि। चारितु निम्मल पालिविण त नर अन् नारिय पावई सिव सुह रंगि ।९।" 'रेलुआ भास श्री जिनचन्द्र सूरि पदानि सण्यिपि चरित्रगणि कृतानि ।' इन पंक्तियों से इसकी भाषा का अनुमान करना संभव होता है। इसमें प्रयुक्त भाषा तत्कालीन अपभ्रश मिश्रित मरुगुर्जर भाषा है। विषय तो इसके नाम से ही स्पष्ट है। इसमें अपने गुरु आ० जिनचन्द्र की स्तुति लेखक ने भक्तिभाव से की है। इसमें गुरुभक्ति तो है किन्तु भक्तिरस नहीं है । छल्ह--आपकी तीन रचनाओं का उल्लेख मिलता है (१) क्षेत्रपाल द्विपदिका, (२) पहाड़िया राग और (३) प्रभातिक नामावलि । सं० १४२५ के आसपास की लिखित एक संग्रह-प्रति में अनेक महत्वपूर्ण रचनायें मिली थीं जिनमें से कुछ पूर्ण और कुछ अपूर्ण थीं। उसी प्रति में छल्हु कवि की उक्त तीनों रचनायें भी प्राप्त हुई थीं। श्री अगरचन्द नाहटा ने छल्हु को 'जैन मरु गुर्जर कवि और उनकी रचनायें' भाग १ में १३वीं शताब्दी का कवि बताया है किंतु 'राजस्थानी साहित्यका आदिकाल में उन्हें १४वीं शताब्दी का कवि कहा है। लगता है कि छल्हु १३वीं के अन्त और १४वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भी वर्तमान रहे होंगे। 'क्षेत्रपालद्विपदिका' में कुल ८ गाथायें हैं । इसकी प्रथम और अन्तिम गाथा उदाहरणार्थ प्रस्तुत की जा रही है :आदि 'सुम्मइ डहडहंतु अइसहउ गरुयउ सदु नहयले । घुम्मइ सघणघोरु जण भीसण मेहलर वउ महियले । रुणु झुणु रुणु झुणंत नेउर सरु पाया लघु पहुत्तउ । नच्चइ खित्तवाल जिण मंदिरि बहु आणंद जुत्तओ।१।' अन्त 'जाइ सु पंथ कुसुम सेवित्तिय जो तुह भत्ति पूयए । विलसइ सुज्जु सुक्ख बहु विह परि दुक्खु न होइ तहक्कए । दिव्वाभरण दिव्व देवंग समीहिय तासु संपए। जो तुह पढ़इ सुणइ खित्ता हिव इम कवि छल्हु जंपए।' १. श्री अ० च० नाहटा-म० ग० जे० कवि पृ० २९ २. श्री अ० च० नाहटा, म० गु० जे० कवि पृ० १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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