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________________ १६८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रास के सम्बन्ध में श्री नाहटा जी केवल इतनी ही सूचना देते हैं कि यह रास आत्मानन्द शताब्दी स्मारक ग्रन्थ में छपा है। ___ अतः रास लेखक के सम्बन्ध में अधिक जानकारी नहीं उपलब्ध हो पाई। डॉ० दशरथ ओझा ने इसे धनपाल की रचना बताया है। किन्त धनपाल के नाम पर श्रावकविधि रास का अन्यत्र कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता अतः डा० दशरथ की बात उचित प्रतीत नहीं होती। इस रास के लेखक गुणाकर सूरि हैं इसके समर्थन में श्री नाहटा, श्री देसाई और अन्य प्रबुद्ध जैन लेखकों की मान्यता से श्री दशरथ ओझा का मन्तव्य मेल नहीं खाता, और न तो श्री ओझा ने अपनी स्थापना के समर्थन में कोई ठोस प्रमाण ही प्रस्तुत किया है अतः उसे स्वीकार करना सम्भव नहीं है। इसकी भाषा साधा. रण मरुगुर्जर है। यह धर्मोपदेश सम्बन्धी रचना है। अत: इसमें काव्यत्व के समावेश का अवसर नहीं है और न उसकी अपेक्षा की जानी चाहिये । घेल्ह - सम्भवतः आप दिगम्बर सम्प्रदाय के कवि थे। आपके सम्बन्ध में अधिक विवरण नहीं प्राप्त हो सके हैं। आपकी एक रचना 'चउवीस गीत' प्राप्त है जिसका समय सं० १३७१ माना जाता है। इसमें जैनधर्म के २४ तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। इस रचना के उद्धरण प्राप्त नहीं हो सके अत इनकी भाषा के सम्बन्ध में कुछ कह पाना सम्भव नहीं है। __ चारित्रगण -आप श्री जिनचन्द्र सूरि के शिष्य थे । आपकी एक रचना 'जिनचन्द्रसूरिरेलुआ' (गाथा ९) १४वीं शताब्दी की मानी जाती है । १४वीं शताब्दी की रेलआ संज्ञक कुछ अन्य रचनायें भी प्राप्त हैं. जैसे 'जिनकुशलसूरिरेलुआ', सालिभद्ररेलुआ और गुरावलीरेला इत्यादि । ये रचनायें सं० १४३७ में लिखित एक स्वाध्याय पुस्तिका की एक प्रति में थीं जिसे जैसलमेर के शास्त्रभंडार से श्री नाहटा जी ने प्राप्त किया था। उन्होंने इनका परिचय 'जैनसत्यप्रकाश' में दिया है और 'रेलुआ' नामक काव्य रूप की विशेषताओं पर भी प्रकाश डाला है। रेलआ संज्ञक रचनाओं की परम्परा शायद आगे नहीं चल पाई । अतः इस लप्तप्राय काव्य विधा का प्रारम्भिक स्वरूप जानने के लिए इन रचनाओं का महत्त्व निर्विवाद रूप से प्रमाणित है। १. श्री अ० च. नाहटा परम्परा पृ० १७४ २. डॉ० दशरथ ओझा हिन्दी सा० का वृ० इ० भाग ३ १० २९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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