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________________ १६७ मरु-गुर्जर जैन साहित्य सावय संभरणत्थ अत्थपय छप्पय छंदिहि, रयणसीहं सूसीस पभणइ आणंदिहि । अरिहंत आण अनुदिण 'उदय धम्म' मूल मत्थइ हउ, यो भविय भत्ति सत्तिहिं सहल सयल लच्छिलीला लहइ ।' अब इनके नाम से प्रसिद्ध दूसरी रचना 'औक्तित' पर विचार कर लिया जाय । इस पर हर्षकुल ने वत्ति लिखी है और उसमें उन्होंने उदयधर्म को रत्नसिंह का शिष्य बताया है किन्तु रचनाकाल सं० १५०१ बताया 'मुलगरु तपगण गगनांगण तरणि श्री रत्नसिंह सूरीणां, शिष्याणुनेदमौक्तिका मुदित मुदयधर्म संज्ञेन ।' अर्थात् इसके लेखक उदयधर्म तो हैं और वे रत्नसिंहसूरि के शिष्य हैं किन्तु उनका रचनाकाल शंकास्पद है। 'सुअंध दहमी कहा' के लेखक श्री उदयचन्द्र कहे जाते हैं और उनका समय १३वीं १४वीं शताब्दी कहा जाता है। हो सकता है य दोनों एक ही हों। गुणाकरसूरि-आप पद्मानन्दसूरि के शिष्य थे। आपकी कृति 'श्रावकविधिरास' का रचनाकाल सं० १३७१ निश्चित है । यह रास आत्मानन्द शताब्दी स्मारक ग्रन्थ में प्रकाशित है। इसकी हस्तलिखित प्रति के लेखक पुरोहित लक्ष्मीनारायण लाल हैं। इसमें श्रावकों के लिए विहित नियम आदि का आदेश-उपदेश मिलता है। रास के अन्त में लेखक ने अपने गुरु और रासके लेखनकाल का उल्लेख किया है। वे छंद उद्धृत किए जा 'अम जे पालो अवर सावह विही, अठ भव मांहि सिवसुख सो पाविहि । रास पद्माणंद सूरि सीसहि कीयउ, तेरह गहत्तरइ अहललियं गउ ।४८॥ जे पढ़इ सो सुणइ ओ रमइ जिणहरे, सासणदेवि तासु सानिधि करइ । जेम ससि सूर अरु मेरुगिरि नंदण, तां जयउ तिहुयण अह जिण सासणं । रास के प्रारम्भ की पंक्तियां भी प्रस्तुत हैं : 'पाय पउम पणमेवि चउवीस वि तित्थंकरह, श्रावक विधि संखेवि भणइ गुणाकर सूरि गुरो।' इन दो पंक्तियों में रचना और रचनाकार के नाम का उल्लेख है। इस १. श्री मो० द० देसाई जै० गु० क० भाग ३ पृ० ४०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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