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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य १६५ 'जीराउलि मंडण पासनाह, पय पउम सुसेवय नागनाह । मणवंछिय तरुगण फलण राह, महि मंडलि गुरु महिमा सणाह । इसका अन्तिम पद्य निम्नाङ्कित है : 'सिरि पास जिणेसरु भुवण दिणेसरु जीराउलि रमणी तिलउ । सुरनर गणि महियउ मई थुणिय उ, उदयकरणु भविभव सरणु।' श्री फलवद्धि पार्श्वनाथ स्तोत्र की भी भाषा का नमूना प्रस्तुत करने के लिए उसके आदि और अन्त का पद्य यहाँ उद्धृत किया जा रहा है :आदि 'जय फल वद्धिय पुरि रमणि हार, जय पास जिणेसर भवणसार । जय जण मण चितिय सुहदत्तार, जयदस दिसि पसरिय जस विचार ।' इसकी अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार हैं : ‘फलवद्धिय मंडणु दुरिय विहंडणु, पास जिणेसर उदयकरणु । तुह चलणि विलग्गउ हउं इत्तउ मग्गउ, भविमहुतुहसय सरणु।' इसके छंदों में विविधता, गेयता, गति और लय दर्शनीय है। इसकी भाषा में मरु गुर्जर का स्वभाविक रूप अधिक स्पष्ट लक्षित होता है। उदयधर्म-आप तपागच्छीय रत्नसिंह सूरि के शिष्य थे। आपकी रचना 'उवएस माल कहाणय छप्पय' धर्मदास गणि के प्राकृत ग्रन्थ उपदेशमाला पर आधारित है। इसमें कुल ८१ छप्पय छन्द हैं। 'प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह' में इस रचना के कर्ता का नाम विनयचन्द्र दिया गया है। श्री मो० द० देसाई ने भी जै० ग० क० भाग १ में इसे विनयचन्द की रचना लिखा था।' लगता है प्रा० गु० काव्य संग्रह में भी वही आधार ले लिया गया था। श्री मो० द० देसाई ने जै० गु० क० भाग ३ में इसे सुधार कर लेखक का नाम उदयधर्म कर दिया है, किन्तु एक नयी समस्या उत्पन्न कर दी है। उन्होंने भाग १ में इसका रचनाकाल १४वीं शताब्दी बताया था किन्तु भाग ३ में १६वीं शताब्दी कहा है। उन्होंने उदयधर्म की एक अन्य कृति 'वाक्य प्रकाश औक्तिक का रचनाकाल सं० १५०७ निश्चित किया है और इसी आधार पर उदयधर्म को १६वीं शताब्दी का कवि घोषित कर दिया है। इस सम्बन्ध में श्री अ० च० नाहटा जी का स्पष्ट मत पहले से रहा है कि यह रचना उदयधर्म की है और उदयधर्म १४वीं शताब्दी के कवि हैं। १. अ० च० नाहटा-जै० म० गु० क० पृ० ६० २. मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग १ पृ. ६ ३. अ० च० नाहटा-राजस्थानी सा० का आदिकाल, परम्परा प० १७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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