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________________ ૧૬૪ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसकी भाषा अपभ्रंश के अनावश्यक बोझ से मुक्त गतिशील मरुगुर्जर है । इसमें अनेक स्थलों पर सुन्दर साहित्यिक-वर्णन मिलते हैं जो पूर्व वर्णित वसंत वर्णन आदि प्रसंगों से प्रमाणित है । इस प्रकार ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टि के साथ ही साहित्यिक एवं भाषिक दृष्टि से भी यह एक महत्त्वपूर्ण रचना सिद्ध होती है । रास के अन्त में लेखक ने रास का रचना काल और अपना नाम दिया है यथा :― 'संवच्छ र इकहत्तर थापिओ रिसहजिणिदो, चैत्र वदि सातमिपहुत धरे नन्दओ ओ जां रवि चंदो । पासड सूरिहि गणहरह नागिदंअ गच्छ निवासो, तसु सीसहि अंबदेव सूरिहिं रचियउ ओ समरा रासो । अहु रास जे पढ़इ गुणइ नाचिइ जिण हरि देइ, श्रवणि सुणइ सो बइठइओ तीरथओ तीरथजात्र फलुलिउ ।' एक अन्य प्रति के अन्त में नागिदंअ गच्छ के बदले नेऊऊख गच्छ भी मिलता है जिसके आधार पर इन्हें निवृत्तिगच्छीय आसड का शिष्य कहा जाता है । उदयकरण - इनकी तीन रचनायें उपलब्ध हैं (1) कयलवाड पार्श्वस्तोत्र, (२) जीरावला पार्श्वनाथ स्तोत्रम् (गा० ९) और (३) फलवद्धि पार्श्वनाथस्तोत्र ( गाथा ८ ) । इनका समय अनिश्चित है । श्री अगरचन्द जी नाहटा इन्हें १४वीं शताब्दी का कवि बताते हैं । लेकिन उन्होंने 'राजस्थानी साहित्य का आदिकाल' में इनकी रचनाओं को १५वीं शताब्दी का बताया था । वे लिखते हैं 'सं० १४२७ में उदयकरण रचित कयलबाड़ पार्श्वस्तोत्र और जीरावलाफलवद्धि पार्श्वस्तोत्र प्राप्त हुए हैं । उदयकरण जी की और भी अनेकों फुटकर रचनायें मिली हैं । " नाहटा जी की जैन मरुगुर्जर कवि बाद की रचना होने के कारण अधिक सुचिन्तित होगी और इसमें उनकी रचनाओं को १४वीं शताब्दी का बताया है अतः इनका उल्लेख १४वीं शताब्दी के कवियों के साथ किया जा रहा है । इनकी कृति 'जीराउला पार्श्वनाथ स्तोत्रम्' का आदि इस प्रकार हुआ है १. श्री अ० च० नाहटा 'जैन मरु गुर्जर कवि और उनकी रचनायें' भाग १ | पृ० ६० २. श्री अ० च० नाहटा परम्परा पृ० १८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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