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________________ १६२ म गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बढ़ाया था। दूसरे भाई साहणो ने खंभात में समुद्री मार्ग से विदेशी व्यापार द्वारा काफी धन कमाया था । सारांश यह कि देश-विदेश के व्यापार में इस परिवार का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान था । पाटण में अपने पिता संघपति देसल के साथ समरसिंह कारोबार सँभालते थे और समय समय पर पाटण स्थित सूबेदार अलफखां की सेवा करके उसे प्रसन्न भी रखते थे । अलाउद्दीन चतुर राजनीतिज्ञ भी था । उसने गुजरात में ऐसा सूबेदार नियुक्त किया था जो हिन्दुओं को आवश्यकतानुसार प्रसन्न भी रख सके । कवि अलफखां की नीति के विषय में लिखता है 'पातसाहि सुरताण भीबुं तह राज करेई । अलपखनि हिन्दू अहलोयघण मानु जु देई । साहुराय देसलह पुत्तु तसु सेवइ पाय | कलाकारी रजविउ खान बहु देइ पसाय ।' : इस रास में १२ भासा या ढाल है । प्रथम भास में शत्रुञ्जय शिखर पर विराजमान आदीश्वर देव और सरस्वती देवी की वंदना की गई है पहिलउ पणमिउ देव आदिसरु सत्तुजंसिहरे, अनु अरिहंत सव्वेवि आराहउं बहुभत्तिरे । तउ सरसति सुमरेवि सारयस सहर निम्मलीय, जसु पयकमल पसाय मुरुष भाणइ मनरलिय । संघपति देसल पुत्तु भणिसु चरिउ समरातणउए, धम्मिय रोसु निवारि निसुणउ श्रवणि सुहावणउए । प्रबन्ध के चौथे प्रस्ताव में कहा गया कि संघ की आज्ञा प्राप्त कर समरसिंह ने महीपाल की आज्ञा लेकर उद्धार कार्य प्रारम्भ किया । कार्य पूर्ण होने पर महोत्सव हुआ । संघयात्रा में कई गच्छों के प्रमुख जैनाचार्य जैसे विनयचन्द्र सूरि, पद्मचन्द्र सूरि, श्री सुमति सूरि आदि के साथ आम्रदेव या अंबदेव सूरि भी गये थे अर्थात् स्वयम् कवि सभी घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी या अतः संघयात्रा वर्णन में तत्कालीन महत्त्वपूर्ण भौगोलिक स्थानों का भी विस्तृत वर्णन किया गया है । समराशाह कुतुबुद्दीन, गयासुद्दीन तथा गयासुद्दीन के पुत्र उल्लखाँ का भी प्रिय पात्र था । तैलंग देश का सूबेदार बनने पर समरसिंह ने तमाम कैदियों को मुक्त कर दिया, कई जिनालय बनवाये और जैनधर्म की बड़ी प्रभावना की । उसके चरित्र पर आधारित 'नामिनन्दनोद्धार' नामक प्रबन्ध १. मो० द० दे० - जै० गु० क० भाग १ पृ० १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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