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________________ १६० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बताया है । ना० प्र० पत्रिका सं० २०१६ अंक १ में आणंदा की हस्तलिखित प्रति प्रकाशित भी हुई है, उसमें भी रचना का नाम महाणंदि कहा गया है। अतः रचयिता का नाम आनन्दतिलक ही उचित लगता है।। इसका समय अनेक विद्वान् योगीन्दु और मुनि रामसिंह के कुछ बाद मानते हैं, श्री अ. च. नाहटा इसे १३-१४वीं शताब्दी की रचना बताते हैं । यह एक आध्यात्मिक रचना है। कवि कहता है कि आत्मा देह में उसी प्रकार निवास करता है जिस प्रकार काष्ट में वैश्वानर और पूष्प में परि. मल । भाषा के उदाहरणार्थ इसी भाव से संबन्धित पंक्तियां देखिये :-- "जिमि वैसाणर कट्ठ महि, कुसुमह परमलु होइ, तिह देह मयि वसइ जिव आणंदा विरला बूझइ कोइ।" । इसकी भाषा पर पुरानी हिन्दी का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है।' प्रत्येक छन्द में कवि के नाम की छाप आणंदा मिलती है इसलिए आणंदा शब्द ग्रन्थ के नाम के साथ-साथ कवि के नाम का भी सूचक हो सकता है यथा: 'गुरु जिणवरु गुरु सिद्धसिद्द, गुरु रयणत्तय सारु। सो दरिसावइ अप्प पर, आणंदा भव जल पावइ पाम्। कवि ने छन्द का नाम हिन्दोला कहा है किन्तु यह दोहे पर ही आधारित है। डॉ० कासलीवाल इसे १२वीं शताब्दी की रचना बताते हैं। श्री नाथराम प्रेमी ने मुनि महानन्दि देव की रचना आनन्दतिलक का उल्लेख किया है जिसे गोपाल साह के आग्रह पर उन्होंने लिखा था। उन्होंने रचना काल नहीं दिया किन्तु उनके द्वारा उद्ध त उदाहरणों की भाषा एवं भावसाम्य के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि यह वही रचना है। उनका एक उदाहरण देखिये : 'ध्यान सरोवरु अमिय जलु, मुनिवर करहिं सनाणु । अट्ठ कमल मल धोवहीं, आणंदा नियउरहुँ ।' इन दोहों का स्वर जहाँ एक ओर योगीन्दु और मुनिरामसिंह से मिलता है वहीं दूसरी ओर कबीर, दादू आदि निर्गण सन्तों की रहस्यवादी रचनाओं के समान है। ऐसी रचनाओं में वैराग्य, श्रावकाचार और तत्वज्ञान जैसी बातों का बाहुल्य होने के कारण काव्य तत्व को पूरा अवकाश नहीं मिलता फिर भी इन कवियों ने अपनी बात को यथा संभव बोधगम्य और कवित्व. पूर्ण बनाने का प्रयास किया है। इनकी कला इनकी स्वभावोक्ति और १. हि० सा० का वृ० इ० भाग ३ पृ० ३४२ पर उद्धृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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