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________________ १५९ मरु-गुर्जर जैन साहित्य जैन तीर्थों से सम्बन्धित चैत्य परिपाटी और तीर्थ मालाओं की रचना १४वीं शताब्दी से अधिक होनी शुरू हई। प्राकृत, संस्कृत से आती हई यह धारा मरुगुर्जर में क्रमशः बढ़ती गई । प्रस्तुत तीर्थमाला की भाषा का नमूना देखने के लिए इसकी एकादश भास की कुछ पंक्तियाँ आगे उद्धृत कर रहा हूँ : 'सिवसिरि मणिमाला वन्निया तित्थमाला, ववगय भव जाला कित्ति कित्ती विशाला। सिव सुह फल रुक्खं देइ तत्तं परुक्खं, निहणउ भव दुक्खं वंछिय होउ सुक्खं ।' यह मरुगुर्जर भाषा की धार्मिक रचना अपभ्रश के प्रभाव से अछूती तो नहीं है किन्तु निश्चय ही मरुगुर्जर का अधिक प्रकृत रूप इसमें प्राप्त होता है। ___ अमरप्रभसूरि के किसी अज्ञात शिष्य की रचना 'संखवापीपुर मण्डव श्री महावीर स्तोत्रम्' (गाथा २१) भी इसी समय की रचना है। इसकी भाषा का संस्कृताभास रूप देखिये :'कुमय तप दिणिदो पायनम्मामरिंदो, भविय कुमय चंदो वद्धमाणो जिनिंदो। परम सुह निवासं मुक्ति कंता विलासं, ववगय भवपास देउनाणप्प दासं ।।' इस पर संस्कृत का प्रभाव है। अनुस्वार लगाकर संस्कृताभास भाषा शैली गढ़ने का यह भी एक प्रचलित प्रयत्न था। इस प्रकार इस काल की मरुगुर्जर पर अपभ्रंश और संस्कृत का प्रभाव यत्रतत्र दिखाई पड़ता है जिससे छूटने का प्रयत्न तत्कालीन जनभाषा कर रही थी। आनन्द तिलक - १३वीं १४वीं शताब्दी के बीच किसी समय ‘आणंदा' नामक कृति लिखी गई । डॉ० रामसिंह तोमर ने अपने शोध प्रबन्ध 'प्राकृत और अपभ्रश साहित्य और उसका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव' में महानन्दि या आणंदा रचित ४३ पद्यों के आनंदास्तोत्र की सूचना दी है जिसका यथावत् उल्लेख डॉ० हरिवंश कोछड़ ने अपने शोध प्रबन्ध अपभ्रंश साहित्य में किया है। डॉ० कासलीवाल महोदय इसे ठीक नहीं समझते और काफी पुष्ट आधार पर उन्होंने बताया है कि रचना का नाम आणंदा और रचयिता का नाम आनन्दतिलेक' है। श्री अगरचन्द नाहटा ने वीरवाणी वर्ष ३ अंक २१ में डाँ० कासलीवाल का समर्थन करते हुए रचना का नाम महानन्दि १. श्री अ० च० नाहटा-परम्परा पृ० ११९-१२० २. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल-वीरवाणी वर्ष ३ अंक १४-१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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