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________________ १५६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अनेक ग्रन्थों और स्तोत्रादि के रचयिता थे। राजस्थान में खरतरगच्छ का प्रभाव १३वीं शताब्दी से ही अधिक था। इस समय श्री जिनसिंहसूरि के शिष्य श्री जिनप्रभसरि ने लघखरतरगच्छ का प्रारम्भ किया। वे असाधारण प्रतिभाशाली आचार्य थे। आपने सं० १३८५ में अपने प्रवचन से मु० तुगलक को प्रभावित किया । आप उच्च कोटि के साहित्यकार थे और प्राकृत तथा अपभ्रश में आपने कई सुन्दर रचनायें की जिनमें वयरस्वामी चरित्र (सं० १३१६) के अलावा मल्लिचरित्र, नेमिनाथरास, षट्पंचाशदिक कुमारिका अभिषेक, ज्ञानप्रकाश, धर्माधर्म विचार कुलक आदि मुख्य हैं । आपकी मरुगुर्जर में लिखित रचना पद्मावती चौ० की चर्चा यथास्थान की जायेगी । सं० १३९० में जिनकुशलसूरि के पट्ट पर जिनपद्मसूरि विराजमान हुए। सारमूर्ति ने इनका पट्टाभिषेकरास लिखा है। स्वयम् आ० जिनपद्मसूरि ने सिरिथूलिभद्दफागु मरुगुर्जर में लिखा है। सं० १३६१ में नागेन्द्रगच्छीय आचार्य चन्द्रप्रभ के शिष्य मेरुतुंग ने प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रबन्धचिन्तामणि लिखा। मलधारी राजशेखर सूरि के शिष्य श्री सुधाकलश ने संगीतोपनिषद् नामक संगीत पर महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा। सं० १३८३ में आ० जिनकुशल सूरि ने श्री जिनदत्तसूरिकृत 'चैत्यवन्दन देवनन्दन कुलक' पर उत्तम वत्ति लिखी। इन्द्रपल्लीय गच्छ के श्री सोमतिलकसूरि (अपरनाम विद्या तिलक) ने वीरकल्प और षट्दर्शन टीका लिखी। आपने श्री जयकीति कृत शीलोपदेशमाला पर शीलतरंगिणी नामक वृत्ति भी लिखी । पल्लीवाल गच्छीय श्री महेश्वरसूरिकृत कालकाचार्यकथा और भुवनसुन्दरीकथा इस शताब्दी की महत्वपूर्ण रचनायें हैं । आ. जिनकुशलसूरि के आदेशानुसार सं० १३७८ में नैषधकाव्य और जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति पर चूणि भी लिखी गई। इनके अतिरिक्त अनेक वृत्ति, टीका और चूणि आदि की रचनायें इस शताब्दी में की गई। चन्द्रतिलक, विवेकसमुद्र आदि कई अन्य अच्छे लेखक भी इस शताब्दी की देन हैं। ___ गद्य के क्षेत्र में तरुणप्रभसरि ने इसी शताब्दी में बालावबोध भाषाटीका शैली में सर्वप्रथम 'षडावश्यक बालावबोध' लिखा। आ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि तरुणप्रभ की रचना दशार्णभद्रकथा में तत्सम शब्द वैसे ही मिलते हैं जैसे विद्यापति कृत कीर्तिलता में । दशार्णभद्रकथा का प्रकाशन भी अगरचन्द नाहटा ने कराया है। यद्यपि १४वीं शताब्दी में १. आ० ह० प्र० द्विवेदी 'हिन्दी सा० का आदिकाल' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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