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________________ १५४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सं० १३५६ में नागर प्रधान माधव ने उल्गू खां तथा नुसरत खां के नेतृत्व में अलाउद्दीन खिलजी की सेनाओं का गुजरात में प्रवेश कराया। मेरुतुंग ने विचारश्रेणिस्थविरावली में लिखा है-'यवना माधव नागर विप्रेण अनीताः', इसी प्रकार पद्मनाभ ने कान्हडदेप्रबन्ध में लिखा है- नव खंडे अपकीरति रही, माधवि च्छ आनिया सही।'1 बघेला राजा कर्ण अपनी परम रूपवती कन्या देवलदे के साथ देवगिरि चला गया। उसकी पत्नी कमला कैद कर ली गई। देवलदे और कमला पर गुजराती तथा हिन्दी में अनेक मार्मिक आख्यानकगीत और काव्य ग्रन्थ लिख गये हैं। इस प्रकार गुजरात में हिन्दू राजसत्ता की समाप्ति के साथ ही गुजरात के गौरवमय इतिहास के स्वर्ण युग का अन्त हो गया। बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा पर अत्याचार और जुल्म होने लगे। जैनों, शैवों और वैष्णवों के मन्दिर गिराये जाने लगे। उनकी ईट और मसाले से उन्हीं मन्दिरों पर मस्जिदें बनाई जाने लगीं। प्रजा के जानमाल की सुरक्षा खतरे में पड़ गई। बहन-बेटियों की इज्जत-आबरू बचाना मुश्किल हो गया। श्रेष्ठियों के व्यापार-धंधे पर बुरा असर पड़ा। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना जोखिम का काम हो गया । जीवन पंगु बनकर रह गया। सं० १३५६ में गुजरात विजय के बाद अलाउद्दीन ने सं० १३५७ में राजपूताने पर आक्रमण किया और वीर हम्मीर को पराजित कर रणथंभौर का किला जीत लिया। उसने उसके बाद राजस्थान के अन्य राज्यों को एक-एककर जीतना प्रारम्भ किया। सं० १३६० में उसने चित्तौड़ को फतह किया और १३६६ से १३६८ के बीच लगातार आक्रमण करके जालौर के चौहान राजा कान्हड़देव से उसका राज्य भी छीन लिया। इस प्रकार एक के बाद दूसरे हिन्दू राजाओं को पराजित कर उनके राज्यों को आपने साम्राज्य में विलीन करने लगा। अन्त से मरुप्रदेश में हिन्दु राजसत्ता समाप्त हो गई। इस सत्ता परिवर्तन का व्यापक प्रभाव जनजीवन का भी पड़ा। गजरात, मालवा और राजस्थान का सदियों पुराना घनिष्ठ सम्बन्ध छिन्न-भिन्न हो गया। लोगों का व्यापार, विवाह और तीर्थ यात्रा आदि के सिलसिले में होने वाला आवागमन बहुत कम हो गया। इसका भाषा विकास पर यह प्रभाव पड़ा कि उक्त प्रदेशों की देश्य बोली-भाषायें अपनी-अपनी सीमा में अवरुद्ध होकर अपने-अपने क्षेत्र में स्थानीय प्रभाव के अनुसार अलग-अलग १. श्री मो० द. देसाई-जैन सा० नो इतिहास पृ. ४२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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