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अध्याय ३
रुम - गुर्जर जैन साहित्य
(वि० सं० १३०१-१४००) राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थिति-१४वीं शताब्दी में गुजरात और राजपूताना में बड़ा राजनीतिक उथल-पुथल हुआ, जिसका इन प्रदेशों के इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़ा। कहा जाता है 'राजा कालस्य कारणम्' अर्थात् राजा काल का कारण होता है। अतः राजा और राजनीतिक स्थिति का प्रभाव सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था अर्थात्- धर्म, संस्कृति, भाषा और साहित्य तथा समस्त जनजीवन पर व्यापक रूप से पड़ना स्वाभाविक है। वि० सं० १३०० में वीरधवल के पुत्र बघेला बीसलदेव ने सोलंकी राजा त्रिभुवनपाल से गुजरात की गद्दी छीन ली और गुजरात में जैन धर्म तथा साहित्य की अप्रतिम सेवा करने वाले चौलुक्य शासन का अन्त कर दिया।
गुजरात में बघेला शासन भी कई कारणों से ज्यादा दिन तक नहीं स्थिर रह सका। सं० १३१२ से १३१५ के बीच गुजरात में बड़ा अकाल पड़ा। प्रजा अन्न के लिए त्राहि-त्राहि करने लगी। उस समय प्रजा-रक्षण का कार्य गुजरात के श्रेष्ठिवर्ग ने शासकों की अपेक्षा अधिक लगन से किया । भद्रेश्वर के श्रीमाल वंशीय जगडूशाह ने सुदूर प्रदेशों से अन्न मँगवाकर गुजरात में जगह-जगह सत्र और दानशालायें चलाई। लगातार तीन वर्षों तक दुष्काल के संकट का मुकाबला किया और तमाम लोगों को भूखों मरने से बचा लिया। इस भयंकर अकाल और उसके निवारणकर्ता जगडूशाह पर अनेक कवियों ने कई रचनायें लिखीं। ___ सं० १३२० के आसपास मांडवगढ़ के पेथडकुमार ने ८० स्थानों में जिनालय बनवाये और प्रतिष्ठा उत्सव कराये । आप देद नामक एक वणिक् के पुत्र थे, जो किसी योगी की कृपा से सुवर्ण सिद्धि का उपाय जानकर अत्यधिक समद्धिशाली हो गये थे। इन्हीं देद के पुत्र पृथ्वीधर या पेथड बड़े दानी और धर्मात्मा थे। आपके चरित्र पर आधारित कई रचनायें लिखीं गई हैं। पोरवाड़ वंशीय पेथड साह पर 'पेथड रास' सं० १३६० में लिखा
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