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________________ १५१ मरु गुर्जर जैन साहित्य इस काल की रचनाओं की भाषा के सम्बन्ध में यह सूचित करना आवश्यक लगता है कि अधिकांश रचनाओं में अपभ्रंश और मरुगुर्जर भाषायें परस्पर ऐसी युगनद्ध हैं कि उनमें से किसी एक का अंगभंग किए बिना दूसरी को अलग करना असम्भव है। इनमें प्राचीन रूढिबद्ध अपभ्रंश के स्थान पर देश्य भाषा की ओर अग्रसर अपभ्रंश का प्रयोग निश्चित रूप से हुआ है जो क्रमशः मरुगुर्जर के रूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया से गुजर रही थी। अतः कुछ रचनायें जिन्हें इतिहास ग्रंथों में शुद्ध अपभ्रंश की रचना घोषित कर दिया गया है उन्हें भी संक्रमण कालीन भाषा के नमूने के तौर पर यहाँ उल्लिखित किया गया है। हाँ, ऐसी रचनाओं का मात्र उल्लेख ही किया गया है, विस्तृत विवरण नहीं दिया गया है। ___ अब तक १३ वीं शताब्दी की प्राप्त रचनाओं का विवरण यथासंभव प्रस्तुत किया गया। इनमें से कुछ की भाषा अपभ्रंश मिश्रित मरुगुर्जर है, कुछ की मरुगुर्जर है और कुछ की अपभ्रंश ही है । भाषा का क्रमिक विकास देखने के लिए ऐसा करना आवश्यक प्रतीत हुआ । विषय की दृष्टि से ये रचनायें विविध प्रकार की हैं। इनमें से कुछ राजस्थान और कुछ गुजरात में लिखी गई हैं, इसलिए स्थानीय प्रभाव उनमें स्वाभाविक रूप से प्रकट होता है लेकिन इतना स्पष्ट है कि इन स्थानों में लिखी गई रचनाओं में प्रवृत्ति और भाषा सम्बन्धी मौलिक अन्तर नहीं है। इसलिए इस उभयनिष्ट भाषा साहित्य के लिए मरुगुर्जर से अधिक उपयुक्त अन्य कोई नाम नहीं है। इनमें चार पद्यों की छोटी रचनाओं से लेकर २०५ पद्यों तक की बड़ी रचनायें भी हैं जो रास, चौपाई, धवल, मातृकाक्षर, गीत, बावनी, जन्माभिषेक, कलश, बोली आदि विविध काव्यरूपों में लिखी गई हैं। इनमें से कुछ का समय ज्ञात है और कुछ का अनुमानाश्रित है किन्तु अप्रामाणिक नहीं है। कुछ का कालनिर्धारण अभी विद्वानों द्वारा होना शेष है । ये रचनायें अधिकतर श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विद्वानों द्वारा लिखी हुई हैं । इस काल में दिगम्बर सम्प्रदाय के साधु विद्वानों ने प्रचुर साहित्य लिखा पर वह अधिकतर संस्कृत या अपभ्रंश में है मरुगुर्जर में उनका साहित्य कम उपलब्ध है। आगे चलकर उन्होंने जो पुरानी हिन्दी (हिन्दी) में लिखा है उसे मरुगुर्जर के साथ ही संग्रहीत किया जा रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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