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________________ १५० मरु गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास "बार अठहत्तरइ माहसिय छद्वि भणिज्जइ । जिणेसर सूरि पइसरइ संघसयल विविह सज्जइ । सूरिमंतु सिरि सव्वएव सू रिहिं जसु दीनउ, जालउरहिं जिणवीर भुवणि बहुउच्छव कीनउ ।” इस षट्पद की अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार हैं-- "विहि संघ स नंदउ दिणण दिणु वीरतित्थुथिरु होउधर । पूजन्ति मणोरह सयद वहि, कव्वट्ठ पटंति नारिनर ।८।" इति षट्पदम् ।। __ अज्ञात कवि कृत एक अन्य रचना १३ वीं शताब्दी की 'जिणदत्त सूरि स्तुति' भी ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित है। इसका रचना काल सं० १२११ के आसपास होना चाहिए। इसकी भाषा १३ वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध की भाषाशैली का अध्ययन करने के लिए महत्त्वपूर्ण है । इस पर अपभ्रंश का प्रभाव अधिक लक्षित होता है। इसमें लेखक और लेखन समय का संकेत नहीं मिलता। काव्यत्व की दृष्टि से पढ़ने पर निराशा ही हाथ आती है किन्तु इसमें ऐतिहासिक महत्त्व की सूचनायें अवश्य उपलब्ध हैं। इस कृति मे जिणदत्त सरि के जन्म, दीक्षा, पदप्रतिष्ठा आदि से सम्बन्धित तिथियाँ दी गई हैं, यथा जन्म सम्बन्धी पंक्तियाँ इस प्रकार हैं “संवत् इग्यारह वरिस वत्तीसइ जसु जम्म । वाछिगमंत्री पिता जणणि बाहड़ देवी सुरम्म ।" इसी प्रकार आचार्य--पदप्रतिष्ठा से सम्बन्धित तिथिसूचक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-- "इगतालइ जिणवय गहिय गुणहुत्तरइ जसु पाट । बइसाखइ बदि छट्टि दिण पय पणमी सुरघाट ।" इसी प्रकार स्वर्गारोहण आदि को तिथि सूचक पद्यों को मिला कर कुल ९ द्विपदियाँ हैं। इसकी भाषा संक्रमण कालीन अपभ्रंश मिश्रित मरुगुर्जर ही है। १. ऐ० ज० का संग्रह पृ० ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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