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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य १४७ साहित्यिक अपभ्रंश, कहीं बोलचाल की देश्य भाषा ( मरुगुर्जर ) है । जिण, तिण, आदि सर्वनामों के रूप तथा प्रत्ययान्त शब्द आधुनिक देश्य भाषा के अधिक निकट हैं । कथा में सरल सुभाषितों का भी प्रयोग किया गया है। सोमप्रभाचार्य सुप्रसिद्ध जैन विद्वान् हो गये हैं। आप पोरवाड़ जाति के वणिक सर्वदेव के पूत्र थे। आपके पितामह जिनदेव प्रतिष्ठित पुरुष एवं राजमंत्री थे। आपने कुमारावस्था में जैन धर्म की दीक्षा ले ली थी और समस्त शास्त्रों का अच्छा अभ्यास करके आचार्य पदवी प्राप्त किया था। आप वहदच्छीय आचार्य विजय सिंह सूरि के शिष्य थे। सूक्ति मुक्तावली ( सिन्दुर प्रकर), सुमतिनाथ चरित्र, शतार्थकाव्य आदि आपके अन्य प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। ये सभी ग्रन्थ प्रायः अपभ्रश, प्राकृत के हैं अतः सोमप्रभाचार्य को हम मुख्य रूप से मरुगुर्जर का कवि नहीं कह सकते । हरिभद्रसूरि-आप बड़गच्छ के आचार्य श्री जिनचन्द्र सूरि के प्रशिष्य एवं श्री चन्द्र सुरि के शिष्य थे। आपने सोलंकी शासक सिद्धराज और कुमारपाल के मत्री पृथ्वीपाल के आश्रय में रहते हए अणहिलपाटन में 'नेमिनाह चरि' नामक प्रसिद्ध चरित काव्य सं० १२१६ में लिखा । यह रचना १३वीं शताब्दी की अवश्य है किन्तु इसकी भाषा अपभ्रंश ही है। अतः इसे मरुगुर्जर की रचना नहीं कहा जा सकता। कहा जाता है कि इन्होंने २४ तीर्थङ्करों का चरित्र लिखा था किन्तु अब केवल चन्द्रप्रभचरित, मल्लिनाथचरित और नेमिनाथचरित ही प्राप्त हैं। नेमिनाथचरित के प्रथम भाग में नेमिनाथ और राजीमती के नव पूर्वभवों का वर्णन है। द्वितीय भाग में नेमिनाथ के साथ श्रीकृष्ण और पाण्डवों का भी वर्णन है। यह काव्य कडवकबद्ध न होकर आद्यन्त रड्डा छन्द में लिखा गया है। इसका एक अंश सनत्कुमार चरित के नाम से डॉ० हर्मन जैकोबी द्वारा सम्पादित होकर सन् १९२१ ई० में जर्मनी से प्रकाशित हो चुका है। इसकी चर्चा अपभ्रंश साहित्य के अन्तर्गत की जा चुकी है । इसका कथानक अन्य चरित काव्यों की तरह वीर एवं शृङ्गार रस के वर्णनों से भरपूर है लेकिन सभी रसों का पर्यवसान अन्ततः शान्तरस में ही किया गया है। काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से ऋतुओं का वर्णन विशेष हृदयग्राही बन पड़ा है। वसन्त वर्णन का एक उदाहरण आगे दिया जा रहा है । इसकी भाषा के आधार पर यह अनुमान किया जा सकेगा कि १३ वीं शताब्दी में लिखित यह काव्यकृति सायास अपभ्रंश में की गई रचना है। उदाहरण देखिए --- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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