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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य १४२ सिरिमा महतरा-आप श्री जिनपति सूरि की आज्ञानुवर्ती साध्वी थीं। अपने २० गाथाओं की एक रचना 'जिनपति सूरि बधामणा गीत' सं० १२३३ के आसपास लिखा। इसमें सं० १२३२ की एक घटना का उल्लेख है--"आसी नयरि बधावणउ, आयउ जिणपति सूरि जिनचंद सूरि सीसु आइया लो बधावणउ बजावि । सुगुरु जिणपति सूरि आविया लो आंकणी । हरिया गोबरि गोहलिया, मोतीय चउकु पुरेहु । " हाले महत्तरो इम भणइ · संघह मनोरह पूरि।" अतः यह उसी समय की रचना होगी। यह कृति सिरिमा महत्तरा या हाले महत्तरा की होगी अथवा दोनों नाम एक ही महत्तरा के हो सकते हैं । इसकी भाषा ठेठ ग्राम प्रचलित लोकगीतों की भाषा है । एक स्त्री द्वारा प्रयुक्त यह भाषा तत्कालीन मरुगुर्जर का बड़ा प्राकृतिक स्वरूप पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करती है। ___ सुमति गणि-आप जिनपति सूरि के विद्वान् शिष्य थे। आप खेड़नगर के निवासी थे और आपकी दीक्षा सं० १२६७ में हुई थी। आपका लिखा 'नेमिरास' उपलब्ध है जो ५७ पद्यों का है। इनकी विद्वत्तापूर्ण कृति 'गणधर सार्धशतकबहबृत्ति' की रचना सं० १२९५ में हुई थी। इस रास की रचना सं १२६७ से १२९५ के बीच किसी समय हुई होगी। श्री नाहटा जी ने इसका रचनाकाल सं० १२७० और कुल गाथा ५८ बताया है। इसमें बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित्र वित्रित है । विषय सुखों को नर्क का द्वार बताता हुआ कवि लिखता है "विसय सुक्खु कहि नरय दुवारु, कहि अनन्त सुहु संजम भारु । भलउ बुरउ जाणंत विचारइ, कग्गिणि कारणि कोडिकुहारइ।" यह रास हिन्दीअनुशीलन वर्ष ७, अंक १ में प्रकाशित हो चुका है। इसमें नेमिनाथ के अति लोक प्रचलित चरित्र के माध्यम से धर्म की शिक्षा दी गई है। ___ आगे कुछ ऐसे कवियों का उल्लेख किया जा रहा है जो स्पष्ट मरुगुर्जर के कवि तो नहीं हैं किन्तु उनकी रचनायें मरुगुर्जर के भाषा विकास के १. श्री अ० च० नाहटा ~जैन मरुगुर्जर कवि पृष्ठ ७-९ २. श्री अ० च० नाहटा-परम्परा पृष्ठ १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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