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________________ मरु गुर्जर जैन साहित्य १३७ श्रावक लखमसी की रचना जिनचन्द्र सूरि वर्णनारास सं० १३७१ के आसपास की रचना होने के कारण निश्चय ही १४वीं शताब्दी की कृतियों के साथ विवेच्य है । उसी प्रकार लक्खण कृत 'अणुवय रयण पईउ' यद्यपि सं०१३१३ की ही रचना है किन्तु इसकी भाषा निश्चय ही अपभ्रंश है इसलिए अणुव्रत रत्न प्रदीप का नामोल्लेख भी १४वीं शताब्दी में ही समीचीन होगा । लाखमदेव की कृति णमिणाहचरिउ का रचनाकाल निश्चित नहीं है । इसकी हस्तलिखित प्रति सं० १५१० की प्राप्त है अतः इसे १३वीं या १४वीं शताब्दी की रचना कहा जा सकता है। इसलिए इसका भी विवरण उपरोक्त दोनों कवियों के साथ १४वीं शताब्दी में ही दिया जायेगा। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इन तीनों कवियों की रचनाओं में मरुगुर्जर की रचना श्रावक लाखमसी कृत जिनचन्द्रसूरि वर्णनारास ही है। शेष दोनों कवियों की भाषा या तो अपभ्रंश या अपभ्रंश मिश्रित भाषा है। बरस -आपकी दो सन्धियों की एक लघुकृति 'वैर सामि चरित्र'' इसी काल की प्राप्त रचना है । इसकी भाषा भी अपभ्रंश ग्रस्त या मिश्रित है। इस रचना की भाषा के नमूने की दष्टि से इसके अन्त की दो पंक्तियाँ आगे उद्धृत की जा रही हैं : "मुनिवर वरदत्ति गुणाहर भत्ति वइरसामि गणहरचरिउ । साहिज्जउ भावि मुंचहु वावि, जि तिहुयण नियगुणभरिउ ।' इसकी प्रति पाटन के भंडार से प्राप्त हई । आमतौर पर इन रचनाओं को अपभ्रंश की रचना मानकर इनका देशी भाषा साहित्य के साहित्येतिहासों में उल्लेख नहीं मिलता किन्तु मरुगर्जर भाषा की संक्रान्तिकालीन स्थिति है जिसमें अपभ्रंश के प्रयोग क्रमशः कम होते गये और धीरे-धीरे भाषा मरुगुर्जर से आ० देश्य भाषाओं में परिवर्तित होती गई, इसलिए जहाँ भी संधिकालीन भाषा प्रयुक्त हो उसे पूर्णतया मरुगुर्जर के साहित्येतिहास से वहिष्कृत नहीं किया जा सकता। ___ वनसेन सूरि--आपकी रचना 'भरतेश्वर बाहुबलिघोर' का मरुगुर्जर भाषा और साहित्य के क्षेत्र में ऐतिहासिक महत्त्व है अतः कई प्रसंगों में इसकी चर्चा इससे पूर्व भी हो चुकी हैं । ४५ पद्यों की छोटी रचना मरुगुर्जर के प्रारंभिक काल की बड़ी महत्त्वपूर्ण रचना हैं । अधिकतर विद्वान् इसका १. मो० द० देसाई-जै० गु० क. भाग १ पृ० ७३ (अपभ्रंश) २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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