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________________ १३६ मरु गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पंडित लाखू-आप ने वि० सं० १२७५ में 'जिणदत्त चरिउ' नामक काव्य ११ संधियों में विरचित किया। आप श्रीधर नामक श्रीमंत के आश्रित पंडित थे। आप के पिता का नाम साहुल और माता का नाम जयता था। संभवतः कवि उत्तर प्रदेश के एटा जिले के बिलरामपुर का निवासी था। इसकी कृति 'जिणदत्त चरिउ' अप्रकाशित है। इसमें बसंतपुर के श्रेष्ठी जीवदेव के पुत्र जिणदत्त की कथा का सुन्दर वर्णन किया गया है । इसी कथा पर आगे चलकर 'रल्ह' आदि मरुगुर्जर के कई कवियों ने अपनी रचनायें की हैं। इसमें सिंघलद्वीप की यात्रा, कई सुन्दरियों से विवाह आदि की कथानक रूढ़ियाँ अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । यह धर्म के आवरण में एक सुन्दर प्रेमकथा है। इसमें जिणदत्त विमलमती नामक सुन्दरी के मनोरम रूप को चित्र में देखकर मुग्ध हो जाता हैं और उससे विवाह कर लेता है। जायसी के पद्मावत नामक प्रेमाख्यान की कई बातें इससे मिलती-जुलती हैं। इसकी भाषा बड़ी अलंकृत हैं। कथानक में अनेक अलौकिक घटनाएं हैं। जैसे सिंघल द्वीप की राजकुमारी श्रीमती की शादी जिणदत्त से होती है। उसके पेट में एक विषधर नाग रहता है जो उसके सो जाने पर उसके पेट से निकल कर प्रेमी राजकुमार की जीवन लीला समाप्त कर देता है। जिणदत्त उस सर्प को मार देता हैं। काव्य में अनेक सुन्दर स्थल हैं । शब्दालंकारों पर कवि का विशेष स्नेह प्रकट होता है। इससे छन्द लययुक्त और कर्ण सुखद बन गये हैं, लेकिन इसकी भाषा को मैं मरुगुर्जर की भाषा नहीं कह सकता क्योंकि इस पर अपभ्रंश का प्रभाव अत्यधिक है अतः इसका एक उदाहरण देकर इसका विवरण समाप्त किया जा रहा है । कवि चन्द्रोदय पर चारों ओर छिटकी हुई चांदनी का भ्रान्तिमान अलंकार युक्त कैसा चमत्कारिक वर्णन करता हैं यथा "मुताहल मंतिए समरिपणु, वीणइं बोरीहलु हवियमणु ।' सिसु पट्टल मंतिए लंपडऊ, काकहो ण वियारइ धूपडउ।" अर्थात् शबर स्त्रियाँ प्रसन्न होकर बेर के फलों को मोती समझ बीन रही हैं। उलक कौवे के बच्चों को हंस का बच्चा समझ विदीर्ण नहीं करता । इत्यादि। १. त्रिभुवन गिरि या तहनगढ़ के राजा अजयपाल के उत्तराधिकारी हरपाल के पुत्र कोशपाल पंडित लाखू के पितामह थे । इनके प्रपिता का नाम लाहंड __ और पिता का नाम साहुल था। २. हिन्दी सा० का० वृ० इ० भाग २ पृ० २६३-६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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