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मरु- गुर्जर जैन साहित्य
है कि आचार्य की पद प्रतिष्ठा जिनचन्द्र सूरि के पट्ट पर जयदेव सूरि द्वारा हुई थी। इनका जन्म सं० १२१० में चैत्र की अष्टमी तिथि को हुआ था । आपके जीवन पर आधारित १३ वीं शताब्दी में लिखी मरुगुर्जर भाषा की यह महत्वपूर्ण रचना है । आश्चर्य है कि उसी समय सं० १२७७ के आसपास की लिखित एकदम मिलती-जुलती रचना २० छन्दों की ही 'भत्तउ' कृत 'गीत' भी आचार्य जिनपति पर आधारित है ।
श्रावक लखण (लक्ष्मण) - श्रावक लखण ( लक्ष्मण ) श्रावक लखमसी, पंडित लाखू और लक्खण तथा लाखमदेव (लक्ष्मण) नामक पाँच कवियों का उल्लेख इतिहास ग्रंथों में मिलता है । इनमें से श्रावक लखण (लक्ष्मण) और पं० लाखू निश्चय ही तेरहवीं शताब्दी के लेखक हैं । श्रावक लखमसी और लाखमदेव १३वीं के अन्तिम या १४वीं शती के प्रारम्भ के कवि लगते हैं । इसलिए यहाँ केवल उक्त दो (श्रावक लवण और पं० लाखू) का ही विवरण दिया जा रहा है । शेष को यथास्थान प्रस्तुत किया जायेगा ।
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श्रावक लखण की उपलब्ध रचना जिनचन्द्र सूरि 'काव्याष्टम् ' कुल आठ गाथा की है । मणिधारी जिनचन्द्र सूरि का समय सं० १२११ से सं० १२२३ तक है अतः यह रचना निश्चय ही १३वीं शताब्दी के प्रथम चरण की है । इसके आदि और अन्त के छन्द उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं - "अभय सूरि सिरि सीसु सगुण, जिणवल्लहु दिउ । तसु पट्टह जिणदत्त सूरि, अवट्ठमि बइट्ठउ । दिव्वं नाण पहाण वलिण, ज कियउ अचंभउ । वालत्तणि लिअ मग्गि सगुरि, रासल अगुब्भमु । गुरु पारततु अगमहि भतु, जिणयत्तसूरि फुडुउच्च रिवि दुप्पसहु जाव वठियइसुहु. तुझ घम्मुकमि कमि करिवी । १।" "अज्जु दियहु सकयत्थु अज्जु नर वन्नु सुहावउ । अज्जु वारु रमणीउ, अज्जु संवच्छरु आवउ । अज्जु जोउ जयवंत, अज्जु महु करणु पियंकरु । अज्जु मित्तु सुह महत्तु अज्जु गह- रासि सुहंकरु । सकयत्थु अज्जु लोयण जुयलु हिअइ अज्जु वढ़ियइसुहु. गउ पाउ अज्ज दुरंतरिण, दिट्ठइ गुरु जिणचंदपहु |८| इसके दूसरे एवं तीसरे पद्य में 'लखणु भणइ' पाठ मिलता है । १. श्री अ० च० नाहटा - जैन गु० कवि और उ० रचनायें पृ० ६. २ . वही
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