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________________ १३० मरु गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने राम ? लिखा है किन्तु श्री अ० च० नाहटा का विश्वास है कि राम के आग्रह पर इसकी रचना पाल्हण ने ही की है क्योंकि यह पंक्ति ‘रामबयण पाल्हण पुज कीजै' स्पष्ट यही अर्थ देती है। आबूरास का अपर नाम नेमीनाथ रासो है । इसके ४९ वें पद्य के अन्त में पाल्हण नाम आया है । ५०वें पद्य में इसका रचना काल दिया गया है, वह पद्य आगे दिया जा रहा है :"केविचडावलि नेमि नमीजइ, रामु वयण पाल्हण पुज कीजइ। वार संवच्छरि नवमासिओ (१२८९) वसंत मासु रंभाउलु दीहे । एह राहु विस्तारिहिं जाओ, राखइ सयल संघ अंबाइ। राखइ ज खुजुआ छइ वेडइ, राखई ब्रह्म संत मूढेरई ।५०।" उपरोक्त प्रति में ही पाल्हण कृत 'नेमिनाथ बारहमासा' नामक १६ पद्यों की एक लघु रचना भी प्राप्त हुई है जिसके प्रथम और १५ वें पद्य में कवि का नाम आया है। प्रथम छंद की प्रथम पंक्ति देखिये : कासमीर मुखमंडण देवी, वाएसरि पाल्हणु पणमेवी । १५ वां पद्य इस प्रकार है : ''जणु परिमलु पाल्हणु भणए, तसु पय अणुदिण भक्तिकरेहु । मण वंछिय फलु पावजिए, धुय सम सरिसु वयणु फुडुएहू ।१५। इणि परि भणिया बारहमासा पढ़त सुणंतह पूज उ आसा ।" इससे लगता है कि दोनों रचनायें पाल्हण कवि की ही हैं। इनमें से आबूरास का प्रकाशन राजस्थान रिसर्च सोसाइटी कलकत्ता के मुखपत्र 'राजस्थानी' के भाग ३ अंक १ में हुआ है। बारहमासे में रचनाकाल नहीं है किन्तु यह भी सं० १२८९ के आसपास की ही रचना होगी। इसके प्रत्येक मास में नेमि राजुल की विरह कथा विप्रलम्भ रूप में मनोहर ढंग से वर्णित है। श्रावण मास का मनोहर वर्णन निम्न दोहों में द्रष्टव्य है : "सावणि सघण घुडुक्कइ मेहो, पावसि पत्तउ नेमि विछोहो । ददुर मोर लवहिं असंगाह, दह दिह बीजु खिडइ च उवाह । कोइल महुर वयणु चवए खइ, विवीह उ धाह करेई । सावणु नेमि जिणिंद विणू, भणइ कुमरि किम गमणउ जाइ। १. श्री मो० द० देसाहे-जै० गु० के ० भाग ३ पृ० ३९८ २. श्री अ० च० नाहटा 'परम्परा' पृ० १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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