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________________ भरु.गुर्जर जैन साहित्य १२९ भपभ्रंश के शब्द सायास प्रयुक्त किए गये हैं । जन प्रचलित शब्द 'गौतम' के स्थान पर गोयम का प्रयोग जानबूझकर व्यञ्जन लोप करके गढ़ा हुआ रूप है, इसी प्रकार मौके-बे-मौके 'ण' की भाषा में भरमार करके कृत्रिम रूप देने का प्रयास किया गया है। यदि इन्हें स्वाभाविक रूप में रखा जाय तो. भाषा सामान्य पाठकों को भी सहज ही लगेगी। पृथ्वोचन्द्र--रुद्रपल्लीय गच्छ के श्री अभयसूरि के आप. शिष्य थे।' आपने 'मातृका प्रथमाक्षर दोहा' नामक ५८ दोहों की एक रचना. 'रसः विलास' नाम से की है । अभदेवसूरि ने सं० १२५८ में 'जयंत विजय' की रचना की थी। अतः रस विलास का समय इसके थोड़ा ही बाद होगा। इसके प्रथम दो दोहे इस प्रकार है :-- "अप्पई अप्पयउ बूझिकरि, जो परप्पइ लीणु । सुज्जिदेव अम्ह हरसणु भवसायर पारीणु ।१॥" माई अक्खर धुरि धरिवि, वर दूहय छंदेण, रस विलास आरभियउ, सुकवि पुहविचंदेण ।। इसके अन्तिम दो दोहे भी भाषा के उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किए जा रहे हैं "रुद्रपल्लि गच्छह तिलय अभय सूरि सीसेण, रसविलास निप्पाइयउ पाइय कधरसेण ।५७। पुहविचंद कवि निम्मविय पढ़ि दूहा चउपन्न, तसु अणुसारिहिं ववहरहिं पसरइ कित्तिखन्न ।५८।। इसकी भाषा मरुगुर्जर है और दोहे अकारादि क्रम से रखे गये हैं। इसमें लेखक का नाम और उसकी गुरु परम्परा की निश्चित सूचना दी गई है। इसका नाम कवि ने 'रस विलास' कहा है अतः कवि 'रस' के प्रति अवश्य सजग है और रचना में शान्तरस का उत्तम निर्वाह हुआ है। पाल्हण-सं० १२८८ या उसके आसपास की लिखी 'आबूरास' नामक मरुगुर्जर की एक रचना 'जीवदयारास' वाली प्रति में ही प्राप्त हई। इसमें मन्त्री वस्तुपाल तेजपाल द्वारा संघ निकाल कर आबूतीर्थ की यात्रा और मन्दिर बनवाने का वर्णन है। इसके रचयिता का नाम श्री १. श्री अ० च • नाहटा 'परम्परा' पृ० १६६ और श्री मो० द० देसाई जै० गु० क० भाग ३ खंड २ पृ० १४७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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