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________________ १२८ मर-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जिसकी प्रति खण्डित होने के कारण इसके पाँच पद्य नहीं प्राप्त हो सके हैं । दोनों रचनायें एक ही प्रति में लिखी मिली थीं। मयण रेहा का चरित्र बड़ा कारुणिक है। उसके पति जुगबाह को उसके नशंस भाई मणिरथ ने मारकर मयणरेहा का सतीत्व नष्ट करना चाहा, पर नाना कष्ट झेलकर वह अपने सतीत्व की रक्षा करती रही । आदिकालीन रास नामधारी ये सभी रचनायें आकार में छोटी हैं और गाने-खेलने की दृष्टि से ही लिखी गई हैं। इनकी भाषा में प्रवाह लय और गेयता है । नेमिचन्द्र भण्डारी-आप इस शताब्दी के विद्वान् श्रावक थे और खरतरगच्छ के प्रसिद्ध आचार्य जिनेश्वर सूरि के पिता थे। आपने प्राकृत भाषा में १६० गाथा की 'षष्टिशतक' नामक रचना की। अपभ्रंश प्रभावित मरुगुर्जर में आपने 'गुरु गुण वर्णन' नामक ३५ पद्यों की सुन्दर रचना की हैं । यह ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित है।1 श्री मो० द० देसाई ने इसका नाम 'जिनवल्लभ सूरि गुरु गुण वर्णन' और इसका रचना काल वि० सं० १२४५ बताया है। इसमें आ० जिनवल्लभ का गुणगान किया गया है। इसके ३४ वें छन्द में रचनाकार का नाम इस प्रकार आया है :"सल्लुद्धार करेसु हउ पालि सुदडढ़ सम्मत्तो, नेमिचन्द इम विनवइए सुहगुरु गुणगण रत्तो " रचना के आदि की पंक्तियाँ निम्नांकित हैं : अन्त "पणमवि सामि वीर जिणु, गणहर गोयम सामि, सुधरम सामिय तुलनि सरणु जुगप्रधान सिवगामि ।१।" "नंदउ विहि जिण मन्दिरहि, नंदउ विहि समुदाओ। नंदउ जिणपत्ति सूरि गुरु, विहि जिण धम्म पसाओ ।३५। इसकी भाषा सरल है। यदि इसमें प्रयुक्त प्राकृत और अपभ्रंश के शब्दों को नजर अन्दाज कर दें तो भाषा मरुगुर्जर के समीप है । ये प्राकृत और १. श्री अ० च० नाहटा 'राजस्थानी सा० का आदिकाल ' परम्परा पृ० १६० २. श्री मो० द० देसाई, जै० गु० क० भाग० ३ खण्ड १ पृ० ३९६ और जै गु० क० भाग ३ खंड २ पृ० १४७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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