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________________ १२५ मरु-गुर्जर जैन साहित्य पूर्वक धर्म की साधना करते हुए अनशन पूर्वक सं० १३३१ में शरीर त्याग किया था। जयमंगल सूरि-ये हेमचन्द्र के गुरुभ्राता रामचंद्र सूरि के शिष्य थे। आप ने १३वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में महावीर जन्माभिषेक नामक रचना की। जयदेव गणि-आप श्री शिवदेव सूरि के शिष्य थे। आपने १३ वीं शताब्दी में ही भावना संधि' नामक एक काव्य लिखा है। संधि नामक रचनाओं का परिचय श्री नाहटा जी ने 'अपभ्रंश भाषा के संधि काव्य की परम्परा' नामक लेख में दिया है । यह लेख राजस्थानी निबन्ध माला में प्रकाशित है। देल्हड़ (देल्हप)-आप एक श्रावक कवि हो गये हैं। इन्होंने श्री देवेन्द्र सूरि की आज्ञा से सं० १३०० के आसपास 'गयसुकमालरास' नामक ३४ पद्यों का लघुरास लिखा। इसमें गजसुकुमार मुनि का चरित्र वर्णित है। कवि ने ग्रंथारम्भ में श्रत देवी को प्रणाम किया है, तदुपरान्त द्वारावती नगरी का वर्णन किया है। वहाँ नरेन्द्र कृष्ण का राज्य था जिन्होंने कंस का संहार किया था। कृष्ण की माता देवकी को मन्दिर में युगल मुनियों को देखकर वैसे ही पुत्र प्राप्ति की कामना हुई। उनके तप से प्रसन्न हो हरिणगवेषी नामक देव ने यह बताया कि उन्हें पुत्र तो होगा किन्तु वह युवा होते ही दीक्षित हो जावेगा । उन्हें अन्ततः पुत्र हुआ जिसका नाम गयसुकुमाल रखा गया। वह बचपन से ही विरक्त था और तप-संयम द्वारा उसने शिवस्थान प्राप्त किया। इसकी प्रति जैसलमेर के शास्त्रभण्डार से प्राप्त हुई और श्री अगरचंद नाहटा ने इसे राजस्थान भारती भाग ३ अंक २ में प्रकाशित करा दिया है। धर्म-आप महेन्द्र सूरि के शिष्य थे। इनकी तीन रचनाओं का पता चला है, (१) जम्बूस्वामीचरित (सं० १२६६) ४१ पद्यों की छोटी रचना है। इसमें भगवान् महावीर के प्रशिष्य जंबूस्वामी का चरित्र वर्णित है। यह रचना प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह में प्रकाशित हो चुकी है। जंबूस्वामी अंतिम केवली कहे जाते हैं। उनकी जीवन गाथा बड़ी मार्मिक है । उन्होंने विवाह की प्रथम रात्रि में ही अपनी आठ स्त्रियों को प्रतिबोधित किया था, साथ ही प्रभव नामक चोर भी अपने ५०० साथियों के साथ प्रतिबुद्ध हुआ। जंबूस्वामी के गुणों का वर्णन करता हुआ कवि कहता है १. हिन्दी सा० का वृ० इतिहास खंड ३ पृ० २९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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