________________
म गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
जिनेश्वर सूरि (द्वितीय) आप जिनपति के पट्टधर थे। जिनपतिसूरि खेड़नगर में शान्ति जिनालय की प्रतिष्ठा सं० १२५८ में की थी । इसी समय शान्तिसूरि के शिष्य 'आसिगु' ने शान्तिनाथरास की रचना की किंतु श्री अ० च० नाहटा का कथन है कि शान्तिनाथरास वि० सं १२५८ के आसपास की रचना है और इसका रचयिता कोई खरतरगच्छीय विद्वान् ही होगा । जैसलमेर में इसकी जो प्रति मिली है वह अपूर्ण है । अतः लेखक का नाम नहीं मालूम पड़ता । शान्तिनाथरास शान्तिसूरि के शिष्य आसिगु या जिनपति सूरि के शिष्य जिनेश्वर सूरि अथवा किसी अन्य की रचना है, अद्यावधि निर्णीत नहीं हो सका है। जिनेश्वर सूरि भी उत्तम लेखक थे । उनकी लिखी चार रचनाओं का उल्लेख श्री नाहटा जी ने किया है(१) महावीर जन्माभिषेक, (२) श्री बासुपूज्य बोलिका, (३) चर्चरी और ( ४ ) शान्तिनाथ बोली ।" हो सकता है कि शान्तिनाथ बोली के साथ आपने ही शान्तिनाथरास की भी रचना की हो। इस रास का एक पद्य दिया जा रहा है
--
"खेड़ नयरि जो संति उद्धरणि कराव्युं, विहि समुदय ससुभत्ति । जिणावs मूरि ढाविचं ।"
खेड़ नगर जोधपुर (राजस्थान) में है । अतः यह रचना राजस्थान में ही लिखी गई होगी और इस सम्भावना को भी सहसा अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि यह जिनपति सूरि के शिष्य जिनेश्वर सूरि की हो । आप की निश्चित रचना महावीर जन्माभिषेक १४ पद्यों की सुन्दर कृति है । इसमें भगवान् महावीर के जन्माभिषेक का मनोरम वर्णन है । तिलोत्तमा आदि अप्सराओं के नृत्यगान सम्बन्धी पद्य आगे उद्धृत किए जा रहे हैं
१२४
――――
"वर रम्म तिलुत्तम अच्छराउ नच्चति भत्ति भर निब्भराउ गायंति वार हारूंज्जालाई, तुह चरियई जिणवर निम्मलाई ।" वज्जंति ढक्क टंबक्क बुक्क, कंसाल ताल तिलिमाह ढुक्कु उप्पति इत सुखर विमाण, नह मंडलि दीसहिं पवर जाण इनकी अन्य रचना वासुपूज्य बोलिका को श्री नाहटा जी ने जिनेश्वर सूरि शिष्यकृत बताया हैं । आपके पिता श्री नेमिचन्द्र भंडारी भी विद्वान् श्रावक थे जिनकी चर्चा आगे की जायेगी । ये मरोठ (मरुकोट) निवासी थे । इनकी दीक्षा खेड़ नगर में ही हुई थी । दीक्षा नाम वीरप्रभ था । आचार्य पद पर आप की प्रतिष्ठा सं० १२७७ में जालौर में हुई थी । आपने संयम
1
१. श्री अ० च० नाहटा - जैन म० गु० क० पृ० १३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org