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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ११९ विधान सम्बन्धी कथा है । दूसरी रचना णेमिणाहचरिउ में (वि० १२४४) नेमिनाथ का चरित्र चित्रित है । आप माथुर संघी श्री चन्द्रकीति के शिष्य एवं अनुज थे । आपने षट्कर्मोपदेश की रचना अम्बाप्रसाद के आग्रह पर की थी। इनके पिता का नाम गुणपाल एवं माता का नाम चचिणी था। इनकी दो रचनायें और कही जाती हैं महावीरचरिउ और जसहरचरिउ । ये सभी अपभ्रंश प्रधान भाषा में लिखित कृतियाँ हैं । इस काल में लिखी रचनायें संक्रमणकालीन हैं, जिनकी भाषा अपभ्रंश के प्रभाव क्षेत्र से निकल कर धीरे-धीरे मरुगुर्जर के प्रांगण में प्रवेश कर रही थी। अतः इन रचनाओं का मरुगुर्जर की साहित्य पीठिका के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान है । इस प्रकार की रचनाओं में सोभप्रभ कृत कुमार पालप्रतिबोध (सं० १२४१ ) महत्त्वपूर्ण है । इसकी भाषा हिन्दी की डिंगल रचनाओं से काफी मेल खाती है जैसे : "ढोल वजन्ता हे सखि पति आयो मोहि लैण । बांगा ढोला मैं चली पति को बदलो लैण । प्रबन्ध चिन्तामणि में मेरुतुंग से पूर्व की रचनाओं के उद्धरण संकलित हैं । मेरुतुंग के समकालीन कवियों में पद्मगुप्त कृत नवसाहसांकचरित, धनपाल कृत तिलकमञ्जरी, धनञ्जय कृत दसरूपक और इसके टीकाकार हलायुध आदि प्रसिद्ध रचनाकार थे। इनमें से कुलचन्द कवि का एक दोहा देखिये "नव जल भरिया मग्गडा गयणि धडकइ मेहु इत्थन्तरि जारि आतसिइ, त उ जाणिसिउ नेहु ।" इसमें भरिया ( भरा ) मग्गडा ( मग में संदेसडा की तरह डा प्रत्यय ) और जारि आदि शब्द देश्य भाषा के द्रष्टव्य हैं। ___ मरुगुर्जर जैन साहित्य की कतिपय विशिष्टतायें- इसमें उच्चकोटि की साहित्यिक रचनाओं के साथ देश भाषा में लिखा लोकसाहित्य भी प्रचुर मात्रा में प्राप्त है। इन रचनाओं में नाना प्रकार की शास्त्रीय एवं लोक काव्य विधाओं का प्रयोग किया गया है। इन रचनाओं की उपलब्धता निरन्तर बनी हुई है, ये प्रत्येक शताब्दी के प्रत्येक चरण में लिखित हैं और इनकी प्रामाणिक प्रतियाँ जैन शास्त्र भांडारों में सुरक्षित हैं । प्राचीन साहित्य की ऐसी अखंड एवं प्रामाणिक उपलब्धता अन्यत्र दुर्लभ है । इनका वर्ण्यविषय सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और लोक जीवन के सभी पक्षों से सम्बद्ध होने के कारण अत्यन्त व्यापक एवं विस्तृत है । ज्ञान भांडारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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