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________________ ११८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बालचन्द्र सूरि ने 'करणा वज्रायुध' नामक नाटक लिखा। आपके समकालीन श्रावक आसड ने विवेकमंजरी और उपदेशकंदली पर टीकायें लिखीं। जयसिंहसूरि भी इस समय के प्रसिद्ध काव्यकार एवं नाटककार थे । उन्हें 'कवि सभा शृङ्गार' का विरुद प्राप्त था। उन्होंने प्रसिद्ध काव्य मेघदूत की मनोरम टीका लिखी है । वादिदेव सूरि के शिष्य रत्नप्रभ सूरि ने नेमिनाथ चरित ( १२३३ सं० ) और दूसरे शिष्य महेश्वर मूरि ने पाक्षिक सप्तति पर सुख प्रबोधिनी नामक वृत्ति की रचना की । सं० १२४६ में माणिक्यचन्द्र सुरि ने मम्मट के प्रसिद्ध ग्रंथ काव्यप्रकाश पर काव्यप्रकाश संकेत नामक टीका लिखी। १२ वीं शताब्दी से ही मरुगुर्जर का स्वरूप निखरने लगता है और उस पर से अपभ्रंश का दबाव कम होने लगता है । पल्ह कवि कृत जिनदत्त सूरि स्तुति की पंक्तियों को प्रस्तुत करके यह पहले ही सूचित किया जा चुका है । १३ वीं शताब्दी में मरुगूर्जर की अनेक उत्तम रचनायें मिलती हैं । कुछ रचनाओं पर अपभ्रंश का प्रभाव भी है, कुछ अपभ्रंश की रचनायें ही हैं फिर भी उनमें मरुगुर्जर के पर्याप्त प्रयोग मिल जाते हैं। इस काल का अपभ्रंश-साहित्य प्रायः मरुगुर्जर का भी साहित्य है क्योंकि भाषा संक्रमणकालीन है। मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने योगीन्दु के योगसार के दोहों की भाषा को आजकल की देशी भाषा का पुराना रूप बताया है । वे कहते हैं "तेने जूनी गुजराती के जूनी हिन्दी निश्चित पणे आपनी कही शकीओ।"1 एक दोहा देखिये :-- __ "अजर अमरु गण गण णिलउ, जहि अप्पा थिरथाइ । सो कम्महि णवि बंधयइ, संचिय पुब विलाइ ।" देवसेन आचार्य कृत दर्शनसार नामक प्राकृत ग्रंथ के आधार पर माइल्ल धवल ने अपभ्रंश में 'दव्वसहाव पयास' (द्रव्यस्वभाव प्रकाश ) लिखा। अमरकीर्ति ने भी अपभ्रंश में 'छक्कम्मुवोसो' षट्कर्मोपदेश नामक ग्रंथ लिखकर गहस्थों के लिए आवश्यक छह कर्मों का उपदेश दिया। इसकी रचना गुर्जर प्रदेशान्तर्गत गोद्ददय के चालुक्यवंशी राजा कृष्ण के समय सं० १२४७ में हुई थी। इन्होंने संस्कृत, प्राकृत में भी ग्रंथ रचना की है। अपभ्रंश में इन्होंने 'पुरन्दर विहाणकहा । लिखी है जिसमें पुरन्दर व्रत १. मो० द० देसाई - जैन साहित्यनो इ० पृ० ६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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