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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ११७ थे अतः राजकाज अधिकतर तेजपाल ही सँभालते थे। इन्हें सरस्वती पुत्र, कवि कुंजर, कवि चक्रवर्ती आदि विरुद प्राप्त थे । वस्तुपाल कृत नरनारायणानन्द ( संस्कृत ) उत्तम महाकाव्य है । इनके समकालीन लेखकों में सोमेश्वर, नानाक पण्डित, अरिसिंह, अमरचन्द्र सूरि आदि प्रसिद्ध कवि हुए। सोमेश्वर वीर धवल के पुरोहित और वस्तुपाल के आश्रित थे । इन्होंने अपनी 'कीर्तिकौमुदी' नामक ९ सर्गों की रचना में वस्तुपाल की विरुद का वर्णन किया है । इसी प्रकार अरिसिंह ने सुकृत संकीर्तन नामक रचना उन्हीं की प्रशंसा में लिखी है । उदयप्रभसूरि कृत सुकृत कीर्तिकल्लोलिनी' आदि ऐसी कई रचनाएँ लिखी गईं । राजस्थान में भी सोलंकी राजाओं का प्रभाव था । दक्षिणी राजपूताना तो कुछ काल तक उनके राज्य का एक अंग ही था । बाद में शासकीय प्रभाव नहीं रहा किन्तु धार्मिक एकसूत्रता के कारण राजस्थान के अधिकतर शासक जैन धर्म की प्रभावना के लिए यथासम्भव सहायता करते रहे और दोनों प्रदेशों में मरुगुर्जर जैन साहित्य लिखा गया । रत्नप्रभसूरि महेश्वरसूरि, आसड आदि कई प्रसिद्ध लेखक हुए। जैन मन्त्री समभाव से सबका समादर करते थे । इस काल में बौद्ध धर्म अपने शिथिलाचार के कारण कई थानों में विभक्त होकर पंचमकारी साधना में लिप्त था और धीरे-धीरे विघटित हो रहा था किन्तु जैन धर्म अपने कठोर अनुशासन, संयम, तप के कारण शासकों, राज कर्मचारियों और श्रेष्ठिवर्ग में फैल रहा था । इसके आचार्यों ने धर्म प्रचार के लिए अपभ्रंश और मरुगुर्जर में प्रचुर साहित्य लिखा जो अधिकतर श्वेताम्बर आचार्यों और लेखकों की देन है क्योंकि दिगम्बर आचार्य मुख्यतः अपभ्रंश में ही लिखते रहे या बाद में पुरानी हिन्दी में लिखा । दक्षिण के दिगम्बर जैनाचार्यों ने दक्षिण की कन्नड़ आदि भाषाओं में भी लिखा । साहित्यिक गतिविधि - इस काल के साहित्यिक गतिविधि की एक झलक प्रस्तुत की जा रही है । अभयदेव सूरि के शिष्य वर्द्धमान सूरि ने वीरजिणेसरपारणउ ( गा० ४३ ) १३ वीं शताब्दी में लिखी । 1 धर्मसूरि शिष्य ने भी इसी समय धर्म सूरि बारह नावउं नामक बारहमासा ५० गाथाओं में लिखा, उसकी भाषा का नमूना देखें : " कुवलय दल सामल धणु ं गज्जइ, नभ छलु मण्डल झुणि छज्जइ । विज्जुलडी झबकिहिं लवइ भणहरु, बित्था रेवि कलासु | "2 १. श्री आ० च० नाहटा - जैन म० गु० कवि २. वही · पृ० २ पृ० ४ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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