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________________ ११६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वे युगपुरुष थे । इनके अनुयायियों में रामचन्द्र गुणचन्द्र (नाट्यदर्पणकार) का नाम उल्लेखनीय है। श्री केशवलाल ध्रुव ने गुजराती भाषा के तीन युगों में से प्रथम युग ( ११ वीं से १४ वीं शताब्दी ) का इन्हें शलाकापुरुष बताया है। कुमारपाल के बाद गुजरात की गद्दी पर उसका भतीजा अजयपाल बैठा जो जैनद्वषी, निर्बुद्धि और अत्याचारी था। उसने कुमारपाल द्वारा दी जाने वाली जैन मन्दिरों की सहायता ही नहीं बन्द करवा दी बल्कि आचार्य हेमचन्द्र के पट्टधर रामचन्द्र सूरि के गुरुभाई बालचन्द्र की सीख से चिढ़कर उनकी क्रूरतापूर्वक हत्या करवा दी। इसके समय से ही सोलंकी राज्य की अवनति भी होने लगी। मालवा स्वतन्त्र हो गया । सं० १२३३ में अजयपाल की हत्या एक द्वारपाल ने कर दी और उसका बालक मूलराज दो वर्ष तक गद्दी पर रहा, तत्पश्चात् उसका छोटा भाई भीमदेव (भोला) गद्दी पर बैठा । यह केवल भोला ही नहीं विलासी भी था। इसके नाम पर महामण्डलेश्वर लावण्यप्रसाद और उसका यूवराज वीरधवल शासन का कामकाज चलाते थे। अन्ततः सं० १३०० में वीरधवल के पुत्र बघेला विशालदेव ने सोलंकी राजा त्रिभुवन पाल से गुजरात का सिंहासन छीन कर स्वयम् को वहाँ का शासक घोषित कर दिया। इसने सं० १३१८ तक शासन किया। इस प्रकार इसी समय से गुजरात में सोलंकी शासन का अन्त एवं बघेला शासन का प्रारम्भ हुआ। ____ अजयपाल के बाद भी सोलंकी तथा बघेल राजाओं के मन्त्री, सेनापति और अन्य बड़े राज कर्मचारी प्रायः जैन ही रहे । इनमें अंबड, आह्लादन और प्रसिद्ध अमात्य वस्तुपल-तेजपाल के नाम उल्लेखनीय हैं। इन लोगों ने जैन धर्म की रक्षा तथा प्रभावना के लिए बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य किया। अतः इस काल में मरुगुर्जर के कवियों का आदर-सम्मान होता रहा और उन्होंने पर्याप्त साहित्य का सजन किया । वस्तुपाल तेजपाल ने साहित्य की श्रीवृद्धि में अभूतपूर्व योगदान दिया, इसके कारण कुछ लोग तत्कालीन गुजराती साहित्य के युग को इनके नाम पर वस्तुपाल-तेजपाल युग भी कहते हैं । ये श्रीपत्तन के रहने वाले प्राग्वाट् वंशीय जैन वणिक् अश्वराज और उनकी पत्नी कुमार देवी के चार पुत्रों में तीसरे और चौथे पुत्र थे। भोला भीम निर्बल था अतः शासन सूत्र इन्हीं दोनों भाइयों ने सँभाल रखा था। भोला भीम के बाद वीरधवल के समय भी ये दोनों भाई मन्त्री और राज शासन के संचालक रहे अतः इनका प्रभाव क्रमशः बढ़ता ही गया। ये राजनीतिज्ञ के साथ काव्य एवं कला मर्मज्ञ थे। वस्तुपाल स्वयम् सुकवि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org..
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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