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________________ ११३ मरु-गुर्जर जैन साहित्य शब्द का प्राचीन प्रयोग मिलता है । उक्त तीन मरुगुर्जर की रचनाओं के अलावा आपने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में भी कई ग्रन्थ लिखे हैं जिनकी सूची यहाँ दी जा रही है :- विघ्नविनाशीस्तोत्र (इसका हजारों लोगों द्वारा नित्य पाठ होता है), पाश्वनाथस्तोत्र, गणधरसप्ततिका, सर्वाधिष्ठायीस्तोत्र, सुगुरु पारतंत्र्यस्तोत्र, श्रुतस्तोत्र (प्राकृत); अजितशान्तिस्तोत्र, चक्रेश्वरीस्तोत्र, सर्वजिनस्तुति (संस्कृत), संदेहरत्नावली, चैत्यवंदनकुलक अवस्थाकुलक, विशिका, आध्यात्मगीत आदि । आपने रुद्रपल्ली में ऋषभदेव और पार्श्वनाथ, अजमेर में पार्श्वनाथ जिनालय, विक्रमपुर में महावीर प्रतिमा, त्रिभवन गिरि में शान्तिनाथ जिनालय और चित्तौड़ में जिनालय की प्रतिष्ठा कराई । आपने अपने शिष्य जिनचन्द्र की योग्यता से प्रसन्न होकर उन्हें ९ वर्ष की अवस्था में ही अपना युवराज बना दिया था। सूरिजी का स्वर्गवास ( आषाढ़ शुक्ला एकादशी सं० १२११) होने के बाद जिनचन्द्र (द्वितीय दादागुरु) ने अपने गुरु के अग्नि सस्कार स्थल पर सुन्दर स्तूप बनवाया । आ० जिनदत्त स्तुति साहित्य में पल्ह या पल्ल कृत स्तुति ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रह में प्रकाशित है। इसके साथ धनपाल कृत तिलकमंजरी और सच्चरिउ महावीर उत्साह अपभ्रंश काव्यत्रयी के नाम से प्रकाशित है। यह स्तुति दस छप्पय छन्दों में है; इसकी सं ११७०-७१ की लिखी ताड़पत्रीय प्रति प्राप्त है । यह रचना भी १२ वीं शती के अन्तिम चरण (सं० ११७० के आसपास) की है। अतः इसकी भाषा पर अपभ्रंश का प्रभाव अधिक होने के कारण इसे भी अपभ्रंश की रचना कहा जाता है। इसकी जिनरक्षित द्वारा लिखित सं० ११७० और ब्रह्मचन्द्र गणि द्वारा लिखित सं० ११७१ की प्रतियाँ उपलब्ध हैं । पल्हकृत स्तुति का छप्पय इस आशय से उद्धृत किया जा रहा है कि विद्वान् इसकी भाषा के सम्बन्ध में लिए गये एकतरफा निर्णय पर पुनर्विकार करें "जिण दिट्ठइ आणंदु चडइ अइ रहसु चउग्गुणु । जिण दिदुइ झडहडइ पाउ तणु निम्मल हुइयुणु । जिण दिट्ठइ सुहु होइ कटु पुव्वुक्किउ नासइ । जिण दिदुइ हुइ रिद्दि दूरि दारिद्द पणासइ । जिण दिट्ठइ हुइ सुइ धम्ममइ अबुह हुकारु उइखहु । यह नवफण मंडिउ पास जिणु, अजयमेरि किन पेक्खहु ।' १ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह चतुर्थ भाग पृ० ३६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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