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________________ ११२ मरु गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास और प्राकृत में अनेक उच्चकोटि की रचनायें की जिनमें चित्रकूटप्रशस्ति, नवकारमाहात्म्य, द्वादशकुलक, पिंडविशुद्धि, प्रश्नोत्तर षष्टीशतक आदि उल्लेखनीय हैं, इनकी भाषा शैली को 'समसंस्कृत' कहा जाता है । आपको विद्वानों ने कालिदास की कोटि का कवि कहा है। आचार्य जिनदत्त सूरि-१२-१३ वीं शताब्दी के बड़े प्रतिभाशाली आचार्य थे । आपको युगप्रधान माना जाता था; आप उच्चकोटिके धर्माचार्य एवं लेखक थे । आपने मरुदेशका सघन परिभ्रमण किया और जैनधर्म का खूब प्रचार किया। आपको मरुस्थली कल्पतरु भी कहा जाता है। अजमेर नरेश अर्णोराज और त्रिभुवनगिरि के राजा कुमारपाल आदि तत्कालीन शासक, सामन्त आपके भक्त थे। आपने अपने गुरु जिनवल्लभसूरि की स्तुति में प्रसिद्ध 'चर्चरी' लिखी है जिसकी चर्चा पहले अध्याय में की जा चुकी है किन्तु यहाँ पुनः स्मरण करना आवश्यक लगता है क्योंकि यह रचना मरुगुर्जर की प्रारम्भिक रचनाओं में विशेष महत्त्वपूर्ण है। उपदेशरसायनरास और कालस्वरूपकुलक आपकी अन्य रचनायें हैं जो प्रकाशित भी है। आपकी गद्यरचना 'बालावबोधप्रकरण' का भी उल्लेख मिलता है । इस प्रकार आप मरुगुर्जर के प्रथम गद्य-पद्य लेखक के रूप में हमारे सामने आते हैं। आपके पिता वाछिग हुंबड जाति के थे। आपकी माता का नाम बाहड़ देवी था। आपका जन्म गुजरात के घोलका नगर में सं० ११३२ में हुआ था । आप जिन वल्लभसूरि के पट्टधर थे। आपका दीक्षानाम सोमचन्द्र था सं० ११६९ में आपको आचार्य पद मिला और आपका नाम आ० जिनदत्त रखा गया। आपका स्वर्गवास सं० १२११ में हुआ । इस प्रकार आप १२ वीं और १३ वीं शताब्दी के भी आचार्य और साहित्यकार थे । अतः यह अपेक्षित था कि इनकी कृतियों का विशेष उल्लेख किया जाय। आपने स्वयम् उच्चकोटि का साहित्य लिखा और साथ ही आपने शिष्यों और प्रशंसकों का बड़ा समूह निर्मित किया । आपके समसामयिक एवं परवर्ती कवियों ने आपकी प्रशंसा में प्रभत साहित्य लिखा। चैत्यवास के विरुद्ध प्रबल आन्दोलन करने के कारण आप युगप्रधान कहे गये । इनके समकालीन आचार्यों में आ० हेमचन्द्र और वादिदेव सूरि आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। आपको 'दादा' कहा जाता है । आपकी जीवनी के लिए प्रामाणिक ग्रन्थ गणधर सार्द्धशतक बृहद्वृत्ति है जिसे सूरि जी के स्वर्गवास के ८४ वर्ष पश्चात् पं० सुमतिगणि ने लिखा था। आपके नाम पर अनेकों दादावाड़ी बने और न जाने कितने स्तवन स्तोत्र लिखे गये। आपकी प्रसिद्ध रचना 'गणधर सार्द्धशतक' में गुर्जरत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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