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________________ मरु गुर्जर जैन साहित्य १११ हो गई। आचार्य अभयदेव ने इनकी पूर्ति की अतः ये नवांगी वृत्तिकार कहे जाते हैं। आप प्रद्यम्नसरि के शिष्य और राजा भोज के समकालीन -महादार्शनिक अभयदेव सूरि से भिन्न हैं । वे धारा नगरी निवासी महीधर श्रेष्ठि के पुत्र थे। उन्होंने सिद्धसेन दिवाकर कृत प्राकृत ग्रंथ सन्मतितर्क पर संस्कृत में 'तत्ववोध विधायिनी नामक टीका लिखी थी। प्रस्तुत अभयदेव बड़सल्ल नगर निवासी ( मेदपाट ) थे। इनके बचपन का नाम सांगदेव था। ये किसी राजा के लाडले पुत्र थे किन्तु आ० जिनेश्वरसूरि के उपदेश से इन्हें वैराग्य हुआ और सं० १०८८ में आप ने दीक्षा ली। आप का स्वर्गवास सं० ११४५ में हुआ। आप जैन समाज में शास्त्रों के सफल टीकाकार के रूप में विख्यात हैं । आपने स्थानांग, समवायाँग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अन्तकृत्दशा, अनुत्तरौपातिक, प्रश्नव्याकरण और विपाक नामक नौ अंगों पर संस्कृत में विद्वत्तापूर्ण टीका लिखी है। आप खरतरगच्छ के पांचवें पट्टधर थे और जिनचन्द्र सूरि प्रथम के गुरुभाई थे । आप जिनवल्लभ सूरि के शिक्षा शिष्य थे। ___ आपके प्रसिद्ध स्तोत्र 'जयति हुयेण' की भाषा में गरुगुर्जर के कुछ प्रयोग प्राप्त हैं। यह स्तोत्र साहित्य के प्राचीनतम उदाहरणों में गिना जाता है। यह स्तोत्र अपभ्रंश भाषा में लिखा गया है। इसमें ३३ गाथायें हैं । इसकी एक गाथा उदाहरणार्थ प्रस्तुत है... "जयतिहुयण वर कप्प इकरव जय जिण धन्न तरि, जयतिहुयण कल्लाणा कोस दुरिय करवरि केसरि तिहुयण जण अविलंधि आण भुवगत्तय सामिय कुणसु सुहाइ जिणेस पास थंभणयपुरिट्ठिय ।। श्री जिनवल्लभसूरि--आचार्य जिनेश्वर सूरि के दीक्षाशिष्य और अभयदेव सूरि के शिक्षा-शिष्य थे । आपको आचार्य पद सं ११६७ में प्राप्त हुआ। आपने भी हजारों की संख्या में नये जैन बनाये। आपने संस्कृत वाहन कुल के हर्ष पुरीय गच्छ के आचार्य जयसिंह सूरि के शिष्य थे । आप केवल मलमल का उत्तरीय एवं अधोवस्त्र धारण करते थे इसलिए सम्मवतः जयसिंह सिद्धराज या कर्णदेव ने इन्हें 'मलधारी' विरुद दिया था, किन्तु यह भी कहा जाता है कि आप कड़े तपश्चर्या में लीन रहने के कारण शरीर को वाहय सफाई आदि पर ध्यान नहीं देते थे इसलिए इनकी प्रसिद्धि मलधारी के रूप में हो गई थी। १. श्री मो० दे० -० गु० क० भाग १ पृ० ५५ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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