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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति १०५ नहीं। दाम्पत्य भाव से वह मिलन के लिए श्रृंगार करते हैं और कभी विरहिणी भाव से मिलनातुर होकर तड़प उठते हैं और कहते हैं "कंच न वरणो नाहरे मोहिं कोइ मेलावो । अंजनरेह न आंखड़ी भाव,भंजन सिरपड़ो दाहरे।" इन पंक्तियों का स्वर निर्गुण सन्तों की रहस्यवादी प्रेमपीर की बिरादरी का लगता है। कबीर कहते हैं _ “अंखड़िया झाई पड़ी पंथ निहार-निहार, जीभड़ियाँ छाल्या पड्या पीव पुकारि-पुकार ॥" अलौकिक दाम्पत्य प्रेम की अभिव्यक्ति आनन्दघन के पदों की विशेषता है । यह उत्कृष्ट कोटि का आध्यात्मिक भक्तिभाव है। इसी प्रकार के भाव जिनहर्ष,,ज्ञानानन्द आदि भक्त कवियों ने भी व्यक्त किये हैं। इसी प्रेम के सम्बन्ध में आध्यात्मिक विवाहों का वर्णन जैन काव्यों में खूब हुआ है। दीक्षाकुमारी या संयमश्री के साथ आचार्यों, मुनियों के विवाहों का वर्णन कई विवाहल उ, धवल और मंगल आदि में जैन कवियों ने किया है । तीर्थंकरों की चरित्ररूपी चूनड़ी धारण करने वाली प्रिया का रूपक भी इसी सन्दर्भ में बाँधा गया है। ब्रह्म जयसागर की चुनड़ी, समयसुन्दर की चरित्र-चुनड़ी और साधुकीर्ति की चुनड़ी आदि इसी प्रकार की आध्यात्मिक प्रेम विवाह सम्बन्धी रचनायें हैं । आध्यात्मिक होलियाँ, फागु भी पर्याप्त लिखे गये हैं। ये सभी प्रेमाभक्ति के अंग हैं। कहीं कहीं वात्सल्य, सख्य, विनय और दास्यभाव भी भक्तिभाव के अंगरूप में अभिव्यक्त हुए हैं। आराध्य की महत्ता, अपनी लघुता, दीनता, उपालम्भ, नामजप आदि भक्ति के अनेक प्रकार परवर्ती जैन भक्ति साहित्य में मिलते हैं। गुरु भक्ति का इन सबके ऊपर स्थान है। इस प्रकार श्रद्धा से प्रारम्भ करके जैन काव्य में १५-१६वीं शताब्दी तक आते-आते भक्ति का स्वरूप भक्ति आन्दोलन से प्रभावित होकर नानावीथियोंसे प्रवाहित अवश्य हुआ है किन्तु उसका मूलतत्त्व निरन्तर अपरिवर्तित रहा है। __ आत्मतत्त्व की गहन अनुभूति ही चिरंतन काव्य है। जैन कवियों की स्वानुभूति मय अभिव्यक्ति स्वाभाविक और सहज है। इनकी कविता में निर्गुण और सगुण का भेद नहीं, समन्वय मिलता है। वैष्णव भक्ति के अंतर्गत ब्रह्म स्वयं अवतार लेता है । राम और कृष्ण ब्रह्म से मनुष्य बने थे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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