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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद इतिहास प्रायः पद्य में ही प्रयुक्त हुई है। मनोरंजन के साथ लोक शिक्षा इसका प्रधान लक्ष्य है। बृहत्कथा, कथासरित्सागर ऐसी रचनाओं के पुराने उदाहरण हैं। जैन साहित्य में समराइच्चकहा, कुवलयमालाकहा, विलासवइकहा आदि उल्लेखनीय रचनायें हैं। जैन कवियों की कथाओं में शृङ्गार, वीर और करुण रस का उत्तम सम्मिलन है। धनपाल कृत भविसयत्तकहा और परवर्ती रचनाओं में श्रतपंचमीकथा, कौतूहल कृत लीलावइकथा आदि के अतिरिक्त कई कथाकोष भी उपलब्ध हैं जिनमें अनेक कथायें संकलित हैं। पुराण-स्वयंभू कृत हरिवंशपुराण से लेकर १२ वीं शती के पद्म कीर्ति कृत पार्श्वपुराण आदि तक नाना पूराण नामधारी रचनायें अपभ्रंश में पाई जाती हैं। ये पुराण' शैली पर लिखी गयी हैं जिनमें जगत् की सृष्टि, संहार, प्रसिद्ध राजवंशों की वंशावली और कथा दी गयी हैं । जहाँ एक ही चरित की कथा प्रधान रूप से रहती है वह पुराण और जहाँ कई शलाका पुरुषों की कथा एकत्र गूंथी रहती है उसे महापुराण कहते हैं किन्तु इस नियम का बहुत कठोरतापूर्वक पालन नहीं होता। रूपक-कृष्ण मिश्र (संस्कृत) के प्रबन्धचन्द्रोदय की शैली पर जैन साहित्य में यशपाल कृत मोहपराजय नाटक, अनन्तनारायण सूरि कृत मायाविजय, पद्मसुन्दर कृत ज्ञानचन्द्रोदय, जयशेखर सरि कृत प्रबोधचिन्तामणि आदि के अतिरिक्त मरुगुर्जर में जिनप्रभाचार्य कृत भव्यचरित और जयशेखर सूरि कृत त्रिभुवनदीपक आदि रूपक रचनायें हैं। ___ बेलि-इसकी परम्परा भी पुरानी हैं। बेलि का संस्कृत मूल वल्लभी में है जो अध्याय का वाचक था, बाद में स्वतन्त्र विधा का वाचक हो गया। इनका मुख्य विषय महापुरुषों का गुणगान होता है । जैनेतर रचनाओं में कृष्ण रुक्मिणी री बेलि साहित्य जगत में बहुप्रसिद्ध रचना है । संझाय - जैन साधुओं के गुण वर्णन तथा उनकी प्रेरणा से अभिभूत रचनाओं को स्वाध्याय या संझाय कहा जाता है। ये आख्यानपरक भी होती हैं और आख्यान रहित भी । अतः इन्हें बन्ध और अबन्ध दोनों काव्य रूपों में रखा जा सकता है। तीर्थंकरों, जैनाचार्यों, मुनियों, सतियों के गुणानुवाद करने वाले शिक्षामूलक काव्य संझाय सम्भवतः स्वाध्याय शब्द से व्युत्पन्न हैं। इलायची पुत्र संझाय, वयर मुनि संझाय आदि इसके उदाहरण हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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