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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति डॉ० दशरथ शर्मा अपने ग्रंथ रास एवं रासान्वयी काव्य में लिखते हैं कि इनमें तत्कालीन युग का स्पष्ट चित्र खींचा गया है। उस काल में रास नृत्य अत्यधिक लोकप्रिय था। इसलिए जैनाचार्यों ने इस लोकप्रिय विधा को अपने उपदेश का माध्यम बनाया होगा। किसी नगर में जब कोई आचार्य प्रवेश करता था तो तालरास या लकूटरास ( डांडिया ) का अभिनय होता था। रेवंतगिरिरास में विजयसेन सूरि के इस कथन का हम उल्लेख कर चुके हैं कि जो लोग रास नृत्य करते हैं उनसे नेमिजिन प्रसन्न होते हैं। प्रारम्भिक रासों के लघु आकार होते थे, श्रृंगार, शांत और त्यागपूर्ण कथा प्रसंगों का बर्णन होता था । इनमें दोहा छप्पय, देशी लोकगीत, ढाल आदि का . योग किया जाता था। इनके रचना की अविच्छिन्न परम्परा १८ वीं शताब्दी तक मिलती है यद्यपि इनका स्वरूप काफी बदल गया था। इसका एक उल्लेखनीय संग्रह 'ऐतिहासिक राससंग्रह' नाम से चार भागों में प्रकाशित हो च का है। चर्चरी भी नाच-नाच कर गायी जाती थी अतः इसकी प्रकृति भी रास से मिलती-जुलती थी। आ० जिनदत्त की चर्चरी और रास दोनों ही मरुगुर्जर रास के प्राचीनतम उदाहरणों में हैं। पवाड़ो-प्रशस्तिमूलक वीररसपूर्ण काव्यरचना पवाड़ा कही जाती है । महाराष्ट्र में यह पद्धति अधिक लोकप्रिय हुई। यह एक प्रकार का बृहद् चरित काव्य है जैसे असाइत कृत हंसवच्छचरित पवाड़ो या हंसाउली प्रबंध, विद्याविलास पवाड़ो आदि । स्फुट रूप से पवाड़े लोक प्रचलित कथाओं पर आधारित विशेष प्रकार के लोकगीत भी हैं जिनका अस्तित्व १३ वीं शताब्दी से मिलता है। __ आख्यान- आरम्भ में ध्रुवा और अन्त में धत्ता लगाकर पारम्परिक छन्दों, देसियों में रचित उपदेश प्रधान इन काव्य ग्रंथों और रासा-ग्रंथों की रचना पद्धति अनेक बातों में समान दिखाई पड़ती है । आख्यान में भी अभिनय के साथ गायन एवं पठन-पाठन द्वारा आस्वाद लेने का विधान है । इसमें रसतत्त्व अधिक होता है। जैन आख्यानों में सम्प्रदाय के सिद्धान्तों और उपदेशों का प्रचार मुख्य उद्देश्य होता है जैसे देवचन्द कृत सुलसाख्यान, अपभ्रंश में रचित १२ वीं शताब्दी की यह रचना भाषा एवं काव्य पद्धति का अच्छा नमूना है। कथावार्ता-आख्यान, उपाख्यान और कथा प्रायः एक अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । कथा गद्य की विधा है लेकिन अपभ्रंश एवं मरुगुर्जर में यह विधा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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