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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति ८५ वाद्य यन्त्रों के विविध स्वर और नूपुरों तथा कंकणों की झंकृति के लिए ध्वन्यात्मक शब्दों का चयन एवं आवश्यकतानुसार उनका निर्माण जितना अपभ्रंश के कवियों ने किया उतना अन्यत्र दुर्लभ है, इस सम्बन्ध में 'परमचरिउ' की दो पंक्तियाँ उद्धृत की जा रही हैं ----- "हण-हण हणंकार महारउदु । छण छण छगंतु गुणं दिछि सदु । कर-कर करंतु कोयंड पवरु, थर-थर थरंतु णाराय नियरु ।" सिरि थूलिभद्द फागु की वर्षा वर्णन सम्बन्धी निम्न पंक्तियाँ प्रायः उद्घृत की जाती हैं : 'झिरि झरि झरि झरि झिरि ए मेहा वरिसंति ।' इसी प्रकार पांडव पुराण, जसहरचरिउ आदि काव्यों से अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं जिनमें भ्रमरों की गुंजार के लिए 'गुमगुमंत' पद नुपूरों की झंकार के लिए 'धवधवधवंत' पुष्पों की सुगन्धि के लिए 'महमहमहंत' आदि पदों का प्रयोग किया गया है । शब्दों और वाक्यांशों की आवृत्ति से कथन को प्रभावोत्पादक बनाने की प्रवृत्ति, मुहावरों-लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा को सजीव एवं सक्षम बनाने चेटा भी महगुर्जर साहित्य में अपभ्रंश से ही होकर आई है । इस प्रकार एक विशेष प्रकार की काव्य रचना शैली अपभ्रंश से मरुगुर्जर को विरासत के रूप में मिली है जिससे उसका उपदेशपरक साहित्य भी अधिक शुष्क होने से बच गया, कहीं-कहीं तो काफी काव्यमय भी बन गया है । छन्द - संस्कृत के साथ श्लोक, प्राकृत के साथ गाथा या गाहा और अपभ्रंश के साथ दूहा या दोहा काव्यक्षेत्र में छा गये । दोहा का आभीरों और सोरठा का सौराष्ट्र से सम्बन्ध जोड़ा जाता है । नई जातियों के साथ नयी भाषा, नये काव्य रूप और छन्द आये होंगे । गाथा प्राकृत की प्रकृति के अनुसार दीर्घान्त और दोहा अपभ्रंश के अनुसार ह्रस्वान्त है । हरिवल्लभ भयाणि ने संदेश रासक की प्रस्तावना में लिखा है कि रासक एक प्रकार का छन्द भी है जो इक्कीस मात्रा का होता है । सन्देशरासक और जिनदत सूरि की प्रसिद्ध रचना 'चर्चरी' में इसी छन्द का प्रयोग किया गया है । काव्य में स्वाभाविक लय प्रवाह के लिए छन्द विधान का बड़ा महत्त्व होता है | अपभ्रंश मुक्तकों में दूहा और प्रबन्ध काव्यों में चौपइ का प्रयोग विशेष रूप से देखा जाता है । जिस प्रकार अभिव्यञ्जना के अन्य पक्षों का उसी प्रकार अपभ्रंश के छन्दों का भी मरुगुर्जर पर काफी प्रभाव पड़ा है । संस्कृत में वर्णवृत्तों का प्रयोग होता था किन्तु प्राकृत और अपभ्रंश के कवियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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