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________________ ८४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास __ जैनाचार्यों ने अपभ्रंश काव्य को जन-जन तक पहुँचाने का भरसक प्रयत्न किया, उसे लोकमान्यता दिलाई और इस लोकभाषा को काव्यभाषा और परिनिष्ठित शिष्ट भाषा का गौरव दिलाया। इसमें न केवल जनसामान्य की भावनाओं का चित्रण किया गया बल्कि सरल और यथार्थ ग्राम्य जीवन की पृष्ठभूमि में उसे जीवन्त कर दिया। परम्परा से हटकर अपभ्रंश ने जो क्रान्तिकारी कदम उठाया उससे मरुगुर्जर साहित्य व्यापक रूप से प्रभावित हुआ, साथ ही लाभान्वित भी हुआ। परन्तु इससे यह न समझा जाय कि अपभ्रंश के कवि केवल परम्परा का त्याग करना ही क्रान्तिकारिता का चिह्न मानते थे बल्कि उन्होंने आवश्यकतानुसार परम्परा का उत्तम निर्वाह भी किया है तथा पूर्व और परवर्ती साहित्य को जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य निभाया है। ___ कथानक रूढ़ियाँ--काव्य में कथानक रूढ़ियों का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । चित्रदर्शन, स्वप्नदर्शन, गुणश्रवण से प्रेमोत्पत्ति, शुक, हंस आदि का दूत बनना, नायक का सिंहलद्वीप जाकर अतुल सम्पत्ति प्राप्त करना, अनेक सुन्दरियों से विवाह करना, समुद्र यात्रा में तूफान आना, नौका का ध्वस्त होना, नायक-नायिका का वियोग और अन्त में किसी अलौकिक शक्ति की कृपा से पुनर्मिलन, विमाता का त्रास आदि कथारूढ़ियाँ संस्कृत, प्राकृत से होती हुई अपभ्रंश तक आई और अपभ्रंश ने उन्हें संजोकर प्रयोग करने के पश्चात् और अधिक सम्पन्न रूप में उन्हें मरुगुर्जर को सौंप दिया। करकंडचरिउ, भविसयत्तकहा, जिणदत्तचरिउ, श्रीपालचरित आदि काव्य ग्रन्थ इसके उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किए जा सकते हैं। ____ अभिव्यंजना-मरुगुर्जर के अभिव्यञ्जना पक्ष पर अपभ्रंश का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा । काव्य रूप और काव्य रचना शैली की जितनी पद्धतियाँ मरुगर्जर में प्रचलित हईं उन सबका उत्स अपभ्रंश काव्य साहित्य में मिलता है। इतने विविध प्रकार के काव्य रूपों से मरुगुर्जर साहित्य जो सम्पन्न दिखाई पड़ता है उसका श्रेय अपभ्रंश को है। कथानक रूढ़ियाँ, काव्य रूप, भाषा शैली, अलङ्कार और छन्द आदि अभिव्यञ्जना के सभी पक्षों पर अप- - भ्रंश की स्पष्ट छाप देखी जा सकती है। शैली- ध्वन्यात्मकता या अनुरणात्मकता अपभ्रंश काव्य भाषा की जानीमानी विशेषता है। विविध भावों और काव्य-व्यापारों को व्यक्त करने के लिए तदनुकूल शब्द योजना का सुन्दर संयोग इस काव्य की अपनी विशेषता है । भौरों की गुंजार, चपला की चमक, घन गर्जन, शस्त्रों की टकराहट, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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