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प्रमाण
क्यों है ? यदि कहा जायेगा कि उस विषयमें निर्विकल्पक विकल्पवासनाका प्रबोधक नहीं है तो अन्योन्याश्रय नामका दोष आयेगा; क्योंकि 'क्षणिकत्व वगैरहके विषयमें निर्विकल्पक दर्शन विकल्प वासनाका प्रबोधक नहीं है यह सिद्ध होनेपर 'बहुतबार विकल्पको उत्पन्न करने रूप' अभ्यासके अभावकी सिद्धि होगी और इस प्रकारके अभ्यासका अभाव सिद्ध होनेपर 'क्षणिकत्वके विषयमें निर्विकल्पक दर्शन विकल्प वासनाका प्रबोधक नहीं है' यह बात सिद्ध होगी। अतः अभ्यासके न होनेसे निर्विकल्पक प्रत्यक्ष क्षणिकत्वके विषयमें विकल्प वासनाका उद्बोधक नहीं है, यह बात बनती नहीं। प्रकरणकी बात भी ठीक नहीं क्योंकि क्षणिक और अक्षणिकका विचार करते समय क्षणिकका प्रकरण भी है हो । बुद्धि पाटवसे आपका क्या मतलब है-नील आदिमें दर्शनका विकल्प उत्पन्न करना, अथवा स्पष्टतर अनुभवका होना ? प्रथम पक्ष में तो अन्योन्याश्रय दोष आता है, क्योंकि 'क्षणिक आदिके विषयमें निर्विकल्पक दर्शन विकल्पवासनाका प्रबोधक नहीं है' इस बातके सिद्ध हो जानेपर विकल्पको उत्पन्न करने रूप पाटवके अभावकी सिद्धि होगी। और पाटवके अभावको सिद्धि हो जानेपर 'क्षणिक आदिके विषय में दर्शन विकल्पवासनाका प्रबोधक नही है' यह बात सिद्ध होगी। दूसरे पक्षमें तो क्षणिकत्व आदिमें भी निर्विकल्पको विकल्प वासनाका प्रबोधक होना ही चाहिए क्योंकि जैसे नीलादिका स्पष्टतर अनुभव होता है, वैसे ही क्षणिकत्वका भी स्पष्टतर अनुभव बौद्ध मानते ही हैं। इसी तरह अथित्वसे आपका क्या तात्पर्य है ? अभिलाषाका होना अथवा जिज्ञासाका होना ? पहला पक्ष ठीक नहीं है। क्योंकि कभी-कभी अनभिलषित वस्तुमें भी विकल्पवासनाका प्रबोध देखा जाता है। जैसे साँप और काँटा वगैरहसे सब बचते हैं, फिर भी पैरमें काँटा लगनेपर विकल्प उत्पन्न होता ही है। दूसरे पक्षमें तो क्षणिकत्वमें भी विकल्पवासनाके प्रबोधका प्रसंग उपस्थित होता है; क्योंकि जैसे नील आदि पदार्थों को जानने की इच्छा ( जिज्ञासा ) रहती है वैसे ही क्षणक्षयको भी जाननेको इच्छा रहतो ही है । अतः 'अभ्यास आदिके न होनेसे निर्विकल्पक दर्शन क्षणिकत्वके विषय में विकल्पवासनाको प्रबुद्ध नहीं करता' ऐसा मानना समुचित नहीं कहा जा सकता। ___ बौद्ध-अभ्यासादि सापेक्ष अथवा निरपेक्ष दर्शन विकल्पका उत्पादक नहीं है। विकल्प तो शब्द और अर्थ रूप विकल्पवासनासे उत्पन्न होता है। और वह शब्दार्थ वासनारूप विकल्प पूर्व वासनासे उत्पन्न होता है। इस तरह विकल्प और वासनाकी सन्तान अनादि है, और यह सन्तान निर्विकल्पक प्रत्यक्ष को १. प्रमेयक०, पृ० ३५ ।
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