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________________ जैन न्याय को उत्पन्न कर सकता है तो विकल्पवासनासापेक्ष अर्थ हो विकल्पको उत्पन्न कर देगा, दोनोंके बीच में एक अन्तर्गडु निर्विकल्पक प्रत्यक्षकी आवश्यकता ही क्या है ? बौद्ध-अज्ञात अर्थ विकल्पको कैसे उत्पन्न कर सकता है ? जैन-तो अनिश्चयात्मक निर्विकल्पक विकल्पको कैसे उत्पन्न कर सकता है ? बौद्ध-अनुभूति मात्रसे ही निर्विकल्पक सविकल्पकको उत्पन्न कर सकता है । जैन-तो जैसे वह नील आदि पदार्थों में विकल्पको उत्पन्न करता है, वैसे ही उसमें रहनेवाले क्षणिकत्वमें भी विकल्पको उत्पन्न क्यों नहीं करता ? यदि करे तो जैसे यह नील है ऐसा विकल्प होता है वैसे ही 'यह क्षणिक है' ऐसा भी विकल्प होना चाहिए। और ऐसा होने से उत्तरकालमें क्षणिकत्वकी सिद्धिके लिए जो अनुमान प्रमाणका आश्रय लिया जाता है, वह व्यर्थ पड़ेगा। तथा गृहीतग्राही होनेसे जैसे बौद्ध दर्शनमें सविकल्पकको प्रमाण नहीं माना जाता वैसे ही अनुमान भी गृहीतग्राही होनेसे अप्रमाण ठहरेगा। बौद्ध-जिस विषयमें निर्विकल्पक प्रत्यक्ष विकल्पवासनाको प्रबुद्ध करता है, उसी विषयमें वह सविकल्पक ज्ञानको उत्पन्न करता है। चूंकि क्षणिकत्वके विषयमें वह विकल्पवासनाको प्रबुद्ध नहीं करता, अतः उसमें वह सविकल्पक ज्ञानको उत्पन्न नहीं करता। जैन-जब निर्विकल्पक अनुभव मात्रसे ही विकल्पवासनाका प्रबोधक होता है तो जैसे वह नील आदिमें विकल्पवासनाको प्रबुद्ध करता है वैसे ही उसे क्षणि: कत्व वगैरहमें भी विकल्पवासनाको प्रबुद्ध करना ही चाहिए; क्योंकि अनुभूति मात्र दोनोंमें समान है। बौद्ध-जिस विषय में अभ्यास, प्रकरण, बुद्धिपाटव और अथित्व होता है, उसी विषयमें निर्विकल्पक विकल्पवासनाका प्रबोधक होता है । क्षणिकत्वके विषयमें ये बातें नहीं पायी जाती। अतः वह उसमें विकल्पवासनाका प्रबोधक नहीं होता। जैन-यदि ऐसा है तो कृपया यह बतलाइए कि यह अभ्यास क्या वस्तु हैबार-बार दर्शन होना अथवा बहुत बार विकल्पको उत्पन्न करना ? यदि अभ्याससे मतलब बार-बार दर्शन होनेसे है तो इस प्रकारका अभ्यास तो जैसे नोल आदिके विषयमें है, वैसे ही क्षणिकत्व आदिके विषयमें भी है; क्योंकि बौद्ध दर्शन में कहा है कि 'यह मानव क्षणिकत्वको ही देखता है।' यदि अभ्याससे मतलब बहुत बार विकल्पको उत्पन्न करनेसे है तो क्षणिकत्व आदिके दर्शन में उसका अभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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