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________________ प्रमाणका फल सर्वार्थसिद्धिमें ज्ञानके प्रामाण्यका समर्थन करते हुए आचार्य पूज्यपादने सग्निवर्षके प्रामाण्यका निराकरण किया है। इसपर सन्निकर्षवादी ने ज्ञानको प्रमाण मानने में एक आपत्ति उपस्थित की है। उसका कहना है कि-"यदि 'ज्ञानको प्रमाण माना जाता है तो फलका अभाव हो जाता है । प्रमाणका फल ज्ञान ही है, अन्य कुछ भी नहीं। उस ज्ञानको यदि प्रमाण मान लिया जाता है तो उसका कोई अन्य फल नहीं हो सकता, और प्रमाणका फल होना अवश्य चाहिए। यदि सनिकर्ष अथवा इन्द्रियको प्रमाण माना जाता है तो उसका फल ज्ञान बन जाता है। उक्त आपत्तिसे यह स्पष्ट है कि सभी दार्शनिकोंने प्रमाणका विचार करते हुए उसके फलका भी विचार किया है; क्योंकि जब प्रत्येक कार्यका कुछ-न-कुछ फल होता है तो प्रमाणका भी फल अवश्य होना चाहिए । बिना फलके प्रमाणकी खोज कोन बुद्धिमान करेगा। वैदिक दर्शनों में प्रमाणका फल ज्ञान है और जिन या जिस कारणसे ज्ञान उत्पन्न होता है वह प्रमाण है । जैन दर्शन में ज्ञानको ही प्रमाण माना है। अतः उसका फल भिन्न है। आचार्य समन्तभद्रने केवलज्ञानका फल उपेक्षा बतलाया है और शेष मति आदि ज्ञानोंका फल हेय और उपादेय बुद्धि तथा उपेक्षा बतलाया है । यह परम्परा फल है । साक्षात् फल तो अज्ञानका नाश है। इस प्रकार प्रमाणका फल दो प्रकारका है-एक साक्षात् फल अर्थात् प्रमाणसे अभिन्न फल और दूसरा परम्परा फल अर्थात् प्रमाणसे भिन्न फल । प्रमाणका साक्षात् फल तो प्रमाणने जिस वस्तुको जाना है, उस विषयक अज्ञानका नाश ही है। और परम्परा फल हान, उपादान और उपेक्षा है, क्योंकि वस्तुका ज्ञान होनेके पश्चात् यदि वह वस्तु अहितकारी प्रतीत होती है तो ज्ञाता उसे छोड़ देता है और यदि हितकारी प्रतोत होती है तो उसे ग्रहण कर लेता है । तथा यदि उस जानी हुई वस्तुसे कोई प्रयोजन नहीं होता तो उसकी उपेक्षा कर देता है । अज्ञान निवृत्तिके पश्चात् ही हान उपादान आदि बुद्धि होती है। सारांश यह है कि प्रमाण १. सर्वार्थ, सू० १-१०। २. 'उपेक्षा फलमाद्यस्य शेषस्यादानहानी । पूर्वा वाऽशाननाशो वा सर्वस्यास्य स्वगोचरे ॥१०२॥'-प्राप्तमी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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