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________________ श्रुतके दो उपयोग ३२७ निरूपण करनेवाला सम्यक् अनेकान्त है। तत् और अतत् स्वभाववाली वस्तुसे शून्य, काल्पनिक अनेकधर्मात्मक जो कोरा वाग्जाल है, वह मिथ्था अनेकान्त है। सम्यक् एकान्तको नय कहते हैं और सम्यक् अनेकान्तको प्रमाण कहते हैं । नयकी अपेक्षासे एकान्त होता है; क्योंकि एक हो धर्मका निश्चय करनेकी और उसका झुकाव होता है । और प्रमाणको अपेक्षासे अनेकान्त होता है, क्योंकि वह अनेक निश्चयोंका आधार है । यदि अनेकान्तको अनेकान्त रूप ही माना जाये और एकान्तको सर्वथा न माना जाये तो एकान्तका अभाव होनेसे एकान्तोंके समहरूप अनेकान्तका भी अभाव हो जाये। जैसे शाखा, पत्र, पुष्प आदिके अभावमें वृक्षका अभाव अनिवार्य है । तथा यदि एकान्तको ही माना जाये तो अविनाभावी इतर सब धर्मोंका निरूपण करने के कारण प्रकृत धर्मका भी लोप हो जानेसे सर्वलोपका प्रसंग आता है । इस तरह शेष भंगोंको भी योजना कर लेनी चाहिए । नयवाद नयका लक्षण-स्वामी समन्तभद्र ने नयका लक्षण इस प्रकार किया है "स्याद्वादप्रविभक्तार्थविशेषव्यञ्जको नयः ॥१०६॥"-आप्तमी० । स्यावाद अर्थात् श्र तप्रमाणके द्वारा गृहीत अर्थके विशेषों अर्थात् धर्मोंका जो अलगअलग कथन करता है उसे नय कहते हैं । विद्यानन्द स्वामीने भी नयशब्दका व्युत्पत्तिपूर्वक अर्थ करते हुए लिखा है "नयानां लक्षणं लक्ष्यं तत्सामान्य विशेषतः । नीयते गम्यते येन श्रुतार्थांशो नयो हि सः ॥६॥ तदंशौ द्रव्यपर्यायलक्षणी साध्यपक्षिणौ। नीयेते तु यकाभ्यां तौ नयाविति विनिश्चितौ ॥७॥" -त० श्लोकवार्तिक १-३३। जिसके द्वारा श्र तप्रमाणके द्वारा जाने गये अर्थ के अंशों-धर्मोको जाना जाता है उसे नय कहते हैं । वे अंश है-द्रव्य और पर्याय । जो नय वस्तुके द्रव्यांशको जानता है उसे द्रव्यार्थिक नय कहते हैं और जो नय वस्तुके पर्यायांशको जानता है उसे पर्यायाथिक नय कहते हैं । इस तरह ये सामान्य नय और उसके दो मूल भेदोंके लक्षण हैं। यह पहले बतला आये हैं कि प्रमाणके भेदोंमें एक श्रत ही ऐसा है जो ज्ञानात्मक भी है और वचनात्मक भी है और उसीके भेद नय हैं । अतः नय भी ज्ञानात्मक और वचनात्मक होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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