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श्रुतके दो उपयोग
षेधकल्पना और युगपद् विधिप्रतिषेधकल्पना, ७. क्रम और युगपद् विधिप्रतिषेधकल्पना।
इनके अतिरिक्त कोई आठवाँ भंग सम्भव नहीं है। इनके संयोगसे उत्पन्न हुए कुछ भंगोंका तो इन्हीं भंगोंमें अन्तर्भाव हो जाता है, जैसे प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ भंगोंको परस्पर में मिलानेसे उत्पन्न हुए भंगोंका अन्तर्भाव तीसरे, पाँचवें, छठे और सातवें भंगमें हो जाता है। और शेष सम्मिश्रित भंग पुनरुक्त होनेसे व्यर्थ प्रमाणित होते हैं।
शंका--विधिकल्पना ही सत्य है अतः विधिकल्पनामूलक एक भंग ही मानना चाहिए।
समाधान--ऐसा मानना ठीक नहीं है; क्योंकि प्रतिषेधकल्पना भी सत्य है।
शंका---प्रतिषेधकल्पना हो सत्य है, अतः प्रतिषेधकल्पनामूलक भंग ही मानना चाहिए। ___ समाधान-~-ऐसा मानना भी ठीक नहीं है; क्योंकि अभावैकान्त प्रमाणविरुद्ध है।
शंका-तो सद्रूप अर्थका कथन करनेके लिए विधिवाक्य और असद्रूप अर्थका कथन करनेके लिए प्रतिषेधवाक्य, इस तरह दो ही वाक्य या भंग मान लेनेसे काम चल जायेगा; क्योंकि सत् और असत्को छोड़कर अन्य कोई पदार्थ ऐसा नहीं है जो शब्दका विषय हो ।
समाधान-यह भी ठीक नहीं है; क्योंकि जिसमें सत् अथवा असत्में से एक ही धर्म प्रधान रूपसे विवक्षित है ऐसी वस्तुसे, जिसमें सत् और असत् दोनों धर्म प्रधान रूपसे विवक्षित हैं ऐसी वस्तु भिन्न होती है। केवल विधिमूलक वचनके द्वारा या केवल प्रतिषेधमलक वचनके द्वारा क्रमसे विवक्षित दोनों धर्मोंका कथन नहीं किया जा सकता।
शंका-तो सत्, असत् और दोनोंको कथन करनेवाले इस तरह शुरू के तीन ही वाक्य मानना युक्त है ?
समाधान-एक साथ सत् असत् दोनोंको विषय करनेवाला अवक्तव्य नामका चौथा भंग भी आवश्यक है।
शंका-तो फिर चार ही वाक्य मानने चाहिए?
समाधान-अवक्तव्यके साथ सत्, असत् और दोनोंको विषय करनेवाले अन्तके तीन वाक्य भी आवश्यक हैं।
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