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________________ श्रुतके दो उपयोग ३.१ । है उस प्रकारका धनुर्धरत्व अन्य षुरुषोंमें नहीं है, यह बतलानेके लिए ही 'पार्थ हो धनुर्धर है' ऐसा कहा गया है। तो इस प्रकारका अर्थ स्यात् पदके प्रसादसे ही लिया जाना शक्य है। ऐसी स्थितिमें स्यात् पद निष्फल कैसे हो सकता है ? तथा 'चैत्र धनुर्धर है' इत्यादि वाक्योंमें धनुर्धरत्व आदिसे अयोग आदिका व्यवच्छेद करनेवाले एवकारके द्वारा यदि धनुर्धरत्व से भिन्न होनेके कारण अशब्दवाच्य अधनुर्धरत्व आदिको भी निवृत्ति की जाती है तो शूरता, उदारता आदि धर्मोंकी भी निवृत्ति की जानी चाहिए; क्योंकि वे भी शब्दवाच्य धनुर्धरत्व आदिसे भिन्न हैं। शंका--जिसमें जिस धर्मका नियत किया जाता है उसके विरोधी धर्मकी हो निवृत्ति की जाती है । चैत्रमें धनुर्धरत्वका नियम करनेपर अधनुर्धरत्व उससे विरुद्ध है। पार्थमें असाधारण धनुर्धरत्वकी विधि करनेपर समस्त जगत्में पाया जानेवाला साधारण धनुर्धरत्व उससे विरुद्ध है। इसी तरह कमलमें नीलत्वकी विधि करनेपर उसमें नीलका बिलकुल भी न पाया जाना विरुद्ध है। अतः एवकारसे उन्हीं विरुद्ध धर्मोकी निवृत्ति की जाती है, शूरता आदि धर्मोकी नहीं। क्योंकि यद्यपि शूरता आदि धर्म भी धनुर्धरत्व आदि धर्मोसे भिन्न है किन्तु फिर भी धनुर्धरत्वसे उनका कोई विरोध नहीं है। समाधान--यह तो अन्धे सर्पके बिल में प्रवेश करनेके न्यायका ही अनुसरण है, स्याद्वादको माने विना इस प्रकारका विभाग नहीं किया जा सकता । शंका--स्याद्वादको माननेपर भो एक प्रश्न खड़ा ही रहता है, जब अधनुर्धरत्व भी शब्दवाच्य नहीं है और शूरता आदि भो शब्दवाच्य नहीं है तब एवकारसे धनुर्धरत्वके विरोधो अधनुर्धरत्वको हो निवृत्ति क्यों होती है, सभीकी निवृत्ति क्यों नहीं होती? समाधान--उसकी वैसी ही सामर्थ्य है। शपका प्रयोग स्वार्थका कथन करने के लिए किया जाता है और स्वार्थ भावाभावात्मक है। स्वरूपको अपेक्षासे भावका व्यवहार किया जाता है और प्रतियोगीको अपेक्षा अभावका व्यवहार किया जाता है। विरोधी धर्म हो प्रतियोगी होता है अविरोधी नहीं। अतः सबकी निवृत्तिकी शंका करना हो बेकार है । सप्तभंगी यह कहना ठीक नहीं है कि शब्द प्रधान रूपसे विधिका हो कथन करता १. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, पृ० १२८ । सूत्र १-६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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