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पृष्ठभूमि
१५ अनेकान्तवाद और नयवादोंकी दृष्टिसे वस्तु स्वरूपका सम्यक् विश्लेषण किया गया है
"न सर्वथा नित्यमुदत्यपैति न च क्रियाकारकमत्र युक्तम् । __नैवासतो जन्म सतो न नाशो दीपस्तमः पुद्गलभावतोऽस्ति ॥"
[स्वयंभूस्तोत्र श्लो० २४ ] यदि वस्तु सर्वथा नित्य हो तो उसमें उत्पाद व्यय नहीं हो सकता, और न उसमें क्रिया-कारककी ही योजना बन सकती है। जो सर्वथा असत् है उसका कभी जन्म नहीं होता और जो सत् है उसका कभी नाश नहीं होता। बुझनेपर दीपकका सर्वथा नाश नहीं होता, वह उस समय अन्धकार रूप पुद्गल पर्यायके रूपमें अपना अस्तित्व रखता है।
नौवें सुविधि जिनके स्तवनमें वस्तुको नित्यानित्यात्मक सिद्ध करते हुए लिखा है
"नित्यं तदेवेदमिति प्रतीतेनं नित्यमन्यत्प्रतिपत्तिसिद्धः । न तद्विरुद्धं बहिरन्तरङ्गनिमित्तनैमित्तिकयोगतस्ते ॥"
[स्वयंभूस्तोत्र श्लो० ४३ ] यह वही है इस प्रकारकी प्रतीति होनेसे वस्तुतत्त्व नित्य है और यह वह नहीं अन्य है, इस प्रकारकी प्रतीतिकी सिद्धिसे वस्तुतत्त्व नित्य नहीं, अनित्य है। इस प्रकार वस्तुका नित्य और अनित्यपन आपके मतमें विरुद्ध नहीं है क्योंकि वह बाह्य और अन्तरंग निमित्त और उनसे होनेवाले कार्यके सम्बन्धको लिये हए है। अर्थात् अन्तरंग और बहिरंग कारणोंके योगसे उत्पन्न हआ घट अन्तरंग कारण मृतिकाकी अपेक्षा नित्य है और बहिरंग कारणके योगसे उत्पन्न हुई घट पर्यायकी अपेक्षा अनित्य है।
अठारहवें अरजिन स्तोत्रमें अनेकान्त दृष्टिको सच्ची बतलाते हुए लिखा है"अनेकान्तात्मदृष्टिस्ते सती शून्यो विपर्ययः । ततः सर्व मृषोक्तं स्यात्तदयुक्तं स्वघाततः ॥"
[स्वयंभूस्तोत्र श्लो० ९८] आपकी अनेकान्त दृष्टि सच्ची है। उसके विपरीत जो एकान्त मत है वह शून्य रूप असत् है । अतः अनेकान्त दृष्टि से रहित जो कथन है वह सब मिथ्या है क्योंकि वह अपना ही घातक है।
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