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जैन न्याय
तथा वेदका व्याख्याता अतीन्द्रियदर्शी है अथवा नहीं है। यदि वह अतीन्द्रियदर्शी है तो फिर आप सर्वज्ञका निषेध नहीं कर सकते । और धर्मके विषय में उसे ही प्रमाण मानना होगा । ऐसा होनेसे 'धर्मके विषय में वेद ही प्रमाण है' यह नियम नहीं रह सकता । यदि व्याख्याता अतीन्द्रियदर्शी नहीं है तो उसके व्याख्यान से यथार्थप्रतिपत्ति कैसे होगी, उसमें अयथार्थ कथनको आशंका बनी रहेगी ।
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मीमांसक - मनु वगैरह विशिष्ट बुद्धिमान् थे, अतः उनके व्याख्यानसे यथार्थ प्रतिपत्ति हो होती है ।
जैन - मनु वगैरह की बुद्धिके विशिष्ट होनेका क्या कारण है ? वेदार्थका अभ्यास, अदृष्ट अथवा ब्रह्मा ? यदि वेदार्थका अभ्यास करनेसे मनुकी बुद्धि विशिष्टः थी तो उन्होंने वेदार्थको जानकर उसका अभ्यास किया था या बिना जाने हो ? बिना जाने वेदार्थका अभ्यास करनेसे बुद्धिका वैशिष्ट्य माननेमें बहुत गड़बड़ी उपस्थित होगी। दूसरे पक्ष में उन्होंने वेदार्थको स्वयं जाना या दूसरेसे जाना ? यदि स्वयं जाना तो अन्योन्याश्रय दोष आता है - वेदार्थका अभ्यास होनेपर स्वयं उसका परिज्ञान हो और स्वयं उसका परिज्ञान होनेपर वेदार्थका अभ्यास हो । यदि मनु वगैरहने दूसरे से वेदार्थका ज्ञान किया तो उस दूसरे व्यक्तिको भी वेदार्थका ज्ञान किसी अन्य व्यक्तिसे ही हुआ होगा । और ऐसा होनेसे अतीन्द्रियदर्शी पुरुष के अभाव में यथार्थताका निर्णय नहीं हो सकेगा ।
अदृष्ट के कारण भी मनु वगैरहका विशिष्ट बुद्धिशाली होना नहीं बनता; क्योंकि अदृष्ट तो सभी आत्माओंके साथ लगा हुआ है, अतः सभीको विशिष्ट बुद्धिशाली होना चाहिए । शायद कहा जाये कि अन्य आत्माओंका अदृष्ट वैसा नहीं है जैसा मनुका था तो यह बतलाना चाहिए कि मनुका अदृष्ट आत्मान्तरोंसे क्यों विशिष्ट था ? यदि वेदार्थका अनुष्ठाता होने के कारण मनुका अदृष्ट विशिष्ट था तो पुनः उक्त प्रश्नोंकी अनुवृत्ति होती है कि मनु ज्ञात वेदार्थके अनुष्ठाता थे अथवा अज्ञात वेदार्थके अनुष्ठाता थे । अतः अदृष्टके कारण भी मनुका विशिष्ट बुद्धिशाली होना नहीं बनता ।
ब्रह्मा को भी वेदार्थका ज्ञान सिद्ध होनेपर ही ब्रह्मा के कारण मनु वगैरहको वेदार्थ के ज्ञानका वैशिष्ट्य सिद्ध हो सकता है । अतः यह प्रश्न होता है कि ब्रह्माको वेदार्थका ज्ञान कैसे हुआ था ? यदि धर्मविशेषके कारण हुआ था तो चक्रक नामका दोष आता है - ब्रह्माको वेदार्थका विशिष्ट ज्ञान था, हो जाये तो वेदार्थका ज्ञानपूर्वक अनुष्ठान करना सिद्ध हो और वेदार्थका ज्ञान
जब यह बात सिद्ध
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