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परोक्षप्रमाण
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नित्य होता है, जैसे शब्दत्व । उसी तरहसे शब्द भी श्रवणेन्द्रियका विषय है। अतः नित्य है।
तथा, विभिन्न देशों और विभिन्न कालोंमें जो गो शब्द, गो व्यक्ति और गोत्व बुद्धियां हैं वे सब एक ही गो शब्दके विषय हैं; क्योंकि 'गौ' इस रूपसे उत्पन्न होते हैं । जैसे आजकलको उत्पन्न गो शब्द बुद्धि । जो गौ शब्द कल था वही आज भी है; क्योंकि 'गो' इस रूपसे ही वह जाना जाता है, जैसे आजका उच्चारित गो शब्द । अथवा आजका गो शब्द कल भी था क्योंकि 'गो' इस रूपसे ही वह जाना जाता है, जैसे कलका उच्चारित गौ शब्द । तथा वाचक शब्द नित्य है; क्योंकि वह वाच्य-वाचकरूप सम्बन्धके बलसे ही अर्थका ज्ञान कराता है। जो अनित्य होता है वह सम्बन्धके बलसे अर्थका ज्ञान नहीं कराता जैसे दीपक अथवा बिजलीका प्रकाश । ___ अर्थापत्ति प्रमाणसे भी शब्दकी नित्यता सिद्ध है। शब्द नित्य है यदि वह नित्य न होता तो उससे अर्थका बोध नहीं होता। जिस शब्दका अर्थके साथ सम्बन्ध जान लिया जाता है उसी शब्दसे अर्थका बोध होता है, अन्यथा नहीं होता। शब्दके अनित्य होनेपर गृहीत सम्बन्धकी अनुवृत्ति उत्तरकालमें नहीं हो सकती, क्योंकि उसी समय उसका विनाश हो जाता है।
शायद कहा जाये कि 'ग', 'ग', 'क', 'क' आदि शब्द समान होते हैं । अतः समान होनेसे अनित्य होनेपर भी शब्द अर्थको प्रतिपत्ति हेतु हो सकता है, इसलिए अर्थापत्ति प्रमाणसे शब्दकी नित्यता सिद्ध नहीं होती। किन्तु ऐसा कहना युक्त नहीं है; क्योंकि विचार करनेपर शब्दोंकी समानता नहीं बनतो, अतः समानताकी वजहसे शब्द अर्थको प्रतिपत्ति में हेतु नहीं हो सकता। इसलिए शब्दको नित्य ही मानना चाहिए।
उत्तरपक्ष-शब्द अनित्य है
जैनोंका कहना है कि 'यह वही गकार है' इस प्रत्यभिज्ञानके द्वारा शब्दको नित्य सिद्ध करना अविचारपूर्ण है। यह प्रत्यभिज्ञान सादृश्यमूलक है, अतः
१. मो० श्लो०, शब्दनि०, श्लो० ४१८-४२१ । २. शाबरभा० १।१।१८। ३. न्या० कु० च०, पृ० ७०३-७२० । प्रमेयक०, मा० पृ० ४०६-४२७ ।
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