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परोक्षप्रमाण
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प्रत्येक पुरुषके प्रति किया जाता है अथवा प्रत्येक शब्दको लेकर किया जाता है अथवा प्रत्येक अर्थको लेकर किया जाता है ?
प्रथम पक्षमें पुरुषके द्वारा प्रत्येक पुरुषके प्रति किया जानेवाला शब्दार्थ सम्बन्ध एक ही है अथवा अनेक है ? यदि वह एक है तो कृतक ( किया हुआ) कैसे है ? पहले भी उसका सद्भाव था अतः वह अकृतक ही ठहरता है। क्योंकि सत् वस्तुका पुरुषसे जन्म मानना युक्त नहीं है। हां, पुरुषके व्यापारसे सतकी अभिव्यक्ति ही हो सकती है। यदि पुरुषके द्वारा प्रत्येक पुरुषके प्रति किया जानेवाला शब्दार्थसम्बन्ध अनेक है तो 'गो' शब्दका अर्थ 'गलकम्बलवाला है और 'अश्व' शब्दका । अर्थ 'अयालवाला' है इस प्रकार एक अर्थकी संगति कैसे हो सकेगी ? __ तथा प्रत्येक पुरुषके प्रति शब्दार्थका कर्ता एक ही है अथवा अनेक है ? यदि एक है तो वह देशान्तरमें रहनेवाले पुरुषों के प्रति शब्द और अर्थका सम्बन्ध कैसे करता है ? यदि उन-उन देशों में जाकर करता है तो पूरी आयु बिता देनेपर भी वह इस कामको नहीं कर सकता। शायद कहा जाये कि एक पुरुष निकटवर्ती बहुत से प्रदेशोंमें शब्द और अर्थके सम्बन्धका निर्धारण करता है। फिर उन प्रदेशोंके पुरुष अन्य प्रदेशोंमें जाकर वही काम करते हैं। इस तरह सर्वत्र व्यवहार हो जाता है। किन्तु ऐसा कहना भी ठीक नहीं है; क्योंकि कुछ प्रयोजन होनेसे. वे अन्य देशोंके पुरुष सर्वत्र क्यों जायेंगे? अत: जहाँ वे नहीं जायेंगे वहीं व्यवहार नहीं होगा।
__ यदि शब्द और अर्थके सम्बन्धको निर्धारण करनेवाले अनेक पुरुष हैं तो सब देशों और कालोंमें, शब्दार्थसंकेतमें एकरूपता नहीं हो सकती। शायद कहा जाये कि शब्दार्थसंकेतके कर्ता सब पुरुष एक जगह एकत्र होकर और परस्परमें विचार करके एक प्रकारका ही संकेत निर्धारित करते हैं, इसलिए संकेतोंमें एकरूपता रहती है। किन्तु ऐसा कहना भी उचित नहीं है, क्योंकि स्वतन्त्रतापूर्वक शब्दार्थसंकेत करनेवाले पुरुष, मिलकर संकेतका निर्धारण क्यों करेंगे? अतः पहला पक्ष ठीक नहीं है। यदि प्रत्येक शब्दका संकेत ग्रहण किया जाता है तो प्रत्येक शब्दका उच्चारण करके किया जाता है अथवा बिना उच्चारण किये ही किया जाता है ? बिना उच्चारण किये तो किया नहीं जा सकता, बन्यथा वह संकेत निराश्रय हो जायेगा। और यदि प्रत्येक शब्दका उच्चारण करके संकेत ग्रहण किया जाता है तो पुरुषकी सम्पूर्ण आयुमें भी इस प्रकारका सम्बन्ध करना शक्य
१. शाबरभा० ०१५। २. मी० श्लो०, पृ० ६४४॥
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