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________________ परोक्षप्रमाण २२९ गम्यका विशेषण होता है यह कथन भी प्रसिद्ध है । घरमें चैत्रका अभाव ही उसके बाहर होनेका गमक है और उसका अविनाभाव विशेषण हो सकता है। अविनाभावके गमकका विशेषण होनेमें कोई दोष नहीं है, जिसके भयसे अविनाभावको गम्यका विशेषण माना जाये ? तथा सभी अर्थापत्तियोंमें अविनाभावगम्यका विशेषण नहीं होता; क्योंकि प्रत्यक्षपूर्वक अर्थापत्ति में गमक स्फोट आदिका ही विशेषण अविनाभाव होता है। इसका कारण यह है कि उसमें गम्य शक्तिकी स्फोटके बिना अनुपपत्ति नहीं है; क्योंकि स्फोटके बिना भी शक्तिका सद्भाव माना गया है । अतः अर्थापत्ति अनुमानसे भिन्न नहीं है । अनुमानके अवयव ___ अनुमानके पांच अवयव माने जाते हैं-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन । साध्य विशिष्ट पक्षके कहनेको प्रतिज्ञा कहते हैं। जैसे, यह पर्वत अग्निवाला है। साधनके कहनेको हेतु कहते हैं। जैसे, 'क्योंकि धूमवाला है।' व्याप्तिपूर्वक दृष्टान्तके कहनेको उदाहरण कहते हैं। जैसे, जो-जो धूमवाला होता है वह-वह अग्निवाला होता है जैसे रसोईघर । और जो-जो अग्निवाला नहीं होता वह धूमवाला भी नहीं होता, जैसे तालाब । इनमें से रसोईघर अन्वय दृष्टान्त है। जिसमें साधनके सद्भावमें साध्यका सद्भाव बतलाया जाता है, वह अन्वय दृष्टान्त होता है । और तालाब व्यतिरेक दृष्टान्त है। जिसमें साध्यके अभावमें साधनका अभाव दिखलाया जाये वह व्यतिरेक दृष्टान्त होता है। पक्षमें हेतुके दोहरानेको उपनय कहते हैं, जैसे-यह पर्वत भी उसी तरह धूमवाला है । नतीजा निकालकर प्रतिज्ञाके दोहरानेको निगमन कहते हैं जैसे, इसलिए अग्निवाला है। अनुमानका पूरा प्रयोग संक्षेपमें इस प्रकार है-यह पर्वत अग्निवाला है; क्योंकि धूमवाला है, जैसे रसोईघर, उसी तरह यह भी धूमवाला है, इसलिए अग्निवाला है। जैन' न्यायमें इनमें से दो ही अंगोंका प्रयोग आवश्यक माना गया है-एक प्रतिज्ञा और एक हेतुका । शेष तीनका प्रयोग आवश्यक नहीं माना गया। किन्तु अल्पबुद्धि जनोंको समझाने के लिए यदि आवश्यक हो तो शेष तीनोंका भी प्रयोग किया जा सकता है। अनुमानके अवयवोंके विषयमें बौद्धका पूर्वपक्ष. बौद्ध दर्शनमें केवल हेतुका प्रयोग ही आवश्यक माना जाता है। उसका १. 'एतद्वयमेवानुमानाग नोदाहरणमिति' ।-परीक्षामु० ३-३७ । । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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