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________________ जैन न्याय ४. सहचरका अनुमान- - जैसे चकवेके युगल में से एकको देखकर दूसरेके होने का अनुमान करना । ५. 'स्व' के देखनेसे स्वामीका अनुमान - जैसे, छत्र विशेषको देखनेसे राजाके होनेका अनुमान करना । ६. बध्यघात अनुमान -- जैसे नेवलेको प्रसन्न देखकर यह अनुमान करना कि इसने अवश्य हो सर्प मारा है । ७. संयोगी अनुमान - जैसे, हाथमें त्रिदण्ड देखनेसे यह अनुमान करना कि यह परिव्राजक है । २२४ नैयायिकों के द्वारा माने गये हेतुओंकी तरह ही सांख्यके द्वारा कल्पित हेतुओंकी संख्याका निराकरण भी जान लेना चाहिए। क्योंकि पूर्वचर आदि हेतुओंका अन्तर्भाव सांख्य कल्पित हेतुओं में भी नहीं होता उन्हें पृथक् हेतु ही मानना पड़ेगा । । अतः सांख्यको भी साध्य - जिसे सिद्ध किया जाता है उसे साध्य कहते हैं । अतः जो सिद्ध हो वह साध्य नहीं हो सकता । किन्तु जिसमें सन्देह हो, कुछका कुछ समझ लिया गया हो, अथवा जिसके विषयमें अज्ञान फैला हुआ हो वही वस्तु साध्य हो सकती है । तथा जिस बातको सिद्ध किया जाये वह प्रत्यक्ष आदिसे बाधित नहीं होना चाहिए। जैसे यदि कोई अग्निको ठण्डी सिद्ध करना चाहें तो नहीं कर सकता, क्योंकि अग्निका ठण्डापन प्रत्यक्ष से बाधित है । अतः अबाधित हो साध्य हो सकता है । दर्शनशास्त्र में अनुमान प्रमाणकी आवश्यकता प्रायः उस समय मानी गयी है जब दो व्यक्तियोंमें किसी बात को लेकर वाद ( शास्त्रार्थ ) होता है । उन दोनों में से एक वादी कहा जाता है और दूसरा प्रतिवादी कहा जाता है । वादी युक्तियों के द्वारा अपने इष्ट तत्त्वको प्रतिवादोके सामने सिद्ध करता है । अतः साध्य वही होता है जो वादीको इष्ट हो और प्रतिवादीको असिद्ध हो। क्योंकि समझानेकी इच्छा वादीको हो होती है । इसीसे जैनदर्शन में इष्ट, अबाधित और असिद्धको साध्य कहा है । १ अर्थापत्ति पूर्वपक्ष -मीमांसक एक अर्थापत्ति नामका स्वतन्त्र प्रमाण मानते हैं । उनका कहना है कि अर्थापत्ति प्रत्यक्ष वगैरह से एक जुदा प्रमाण है, क्योंकि उसका स्वरूप अन्य प्रमाणोंसे भिन्न है । जिसका जिससे भिन्न स्वरूप होता है वह उससे एक जुदा १. साध्यं शक्यमभिप्रेतमप्रसिद्धं ततोऽपरम् । साध्याभासं यथा सत्ता भ्रान्तेः पुरुषधर्मतः ॥ २० ॥ - प्रमाण संग्रह | २. न्या० कु० च० पृ० ५०५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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