________________
परोक्षप्रमाण
२२५
प्रमाण होता है जैसे अनुमान प्रत्यक्षसे एक जुदा प्रमाण है। उसी तरह अर्थापत्तिका स्वरूप भी प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे बिलकुल भिन्न है। इसका विशेष इस प्रकार है-प्रत्यक्ष आदि पाँच प्रमाणोंसे जाना गया अथवा सुना गया जो अर्थ जिसके बिना न हो सके उस अदृष्ट अर्थको कल्पना करनेको अर्थापत्ति कहते हैं। प्रत्यक्ष आदि निमित्तोंके भेदसे अर्थापत्ति छह प्रकारकी होती है। जैसे, प्रत्यक्षसे अग्निका जलाना रूप कार्य देखकर यह कल्पना करना कि अग्निमें जलानेको शक्ति है अन्यथा वह जला नहीं सकती, वह प्रत्यक्षपूर्वक अर्थापत्ति है। सूर्यको एक जगहसे दूसरी जगह देखकर अनुमानसे जानते हैं कि सूर्य चलता है। और अनुमानसे जानी हुई सूर्यको गतिके आधारपर यह कल्पना करना कि सूर्य में गमन करनेको शक्ति है, यह अनुमानपूर्वक अर्थापत्ति है। उपमान प्रमाणसे गवयसादृश्य विशिष्ट गोको जानकर उसके आधारपर यह कल्पना करना कि सादृश्यविशिष्ट गोमें उपमान प्रमाणके द्वारा ग्राह्य होनेकी शक्ति है, अन्यथा वह उपमान प्रमाणसे ग्राह्य नहीं हो सकता, यह उपमानपूर्वक अर्थापत्ति है। ये अर्थापत्तियाँ जुदा ही प्रमाण हैं, क्योंकि ये अतीन्द्रिय शक्तिको विषय करते हैं । शक्तिको न तो प्रत्यक्षसे जाना जा सकता है, क्योंकि वह अतीन्द्रिय है; न अनुमानसे जाना जा सकता है, क्योंकि जिस विषयमें प्रत्यक्षको प्रवृत्ति नहीं है, उसमें अनुमानकी प्रवृत्ति नहीं हो सकती। .
शब्द और उपमान प्रमाणकी तो सम्भावना ही नहीं है कि वे शक्तिको जान सकें। क्योंकि शब्द और सादृश्यके बिना ही शक्तिकी प्रतीति हो जाती है। अतः अर्थापत्ति ही शक्तिको विषय कर सकती है।
यदि शब्दमें वाचक शक्ति न होती तो शब्दसे अर्थकी प्रतिपत्ति नहीं हो सकती थी। इस अर्थापत्तिसे शब्दमें वाचकशक्ति जानकर उसके आधारपर शब्दमें नित्यताकी कल्पना करना अर्थापत्तिपूर्वक अर्थापत्ति है। 'मोटा देवदत्त दिनमें नहीं खाता' यह बात सुनकर उसके रात्रिमें भोजन करनेकी कल्पना करना श्रुत अर्थापत्ति है । जीवित चैत्र नामके व्यक्तिको घरपर न देखकर उसके आधारपर यह कल्पना करना कि वह कहीं बाहर गया है, अभावपूर्वक अर्थापत्ति है।
___ यदि कहा जाये कि यह तो अनुमान ही है तो ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि अनुमानको सामग्री अर्थापत्ति में नहीं पायी जाती। पक्षधर्मता आदि सामग्रोसे जो ज्ञान होता है उसे ही अनुमान कहते हैं । वह सामग्री अर्थापत्तिमें नहीं है। अतः अर्थापत्ति एक पृथक् ही प्रमाण है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org