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रोक्षप्रमाण
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नियम होता है। इस तरह अविनाभावके दो भेद हैं।
हेतुके भेद-जैनदर्शनमें हेतुके बहुत-से प्रकार बतलाये हैं। संक्षेपसे हेतुके दो भेद है--एक उपलब्धि रूप ( भावरूप ) और एक अनुपलब्धि रूप ( अभावरूप)। दोनों में से प्रत्येकके छह-छह भेद हैं-कार्य, कारण, व्याप्य, पूर्वचर, उत्तरचर, सहचर। ये छह उपलब्धि रूप हेतुके भेद हैं। १. कायहेतु--जैसे, वहाँ आग है क्योंकि धूम है । यहाँ धूम हेतु अग्निका कार्य है। २. कारणहेतु--जैसे, वहाँ छाया है; प्योंकि छाता तना हुआ है। यहाँ 'छाता' हेतु छायाका कारण है। ३. व्याप्यहेतु--जैसे सब अनेकान्तात्मक है क्योंकि सत् हैं। यहाँ सत् हेतु अनेकान्तात्मक रूप साध्यका व्याप्य है। ४. पूर्वचर--शकट (रोहिणी ) नक्षत्रका उदय होगा क्योंकि कृत्तिकाका उदय हो चुका । यहाँ कृत्तिकाका उदय शकटके उदयका पूर्वचर है । ५. उत्तरचर--जैसे, भरणीका उदय हो चुका; क्योंकि कृत्तिकाका उदय हो रहा है। यहाँ कृत्तिकाका उदय, भरणीनक्षत्रके उदयका उत्तरवर्ती है। ६. सहचर हेतुजैसे, इस आममें रूप हैं; क्योंकि रस है । यहाँ रस हेतु रूप साध्यका सहचारी है। अनुपलब्धि रूप हेतुके छह भेद इस प्रकार हैं-कार्यानुपलब्धि, कारणानुपलब्धि, व्यापकानुपलब्धि, पूर्वचरानुपलब्धि, उत्तरचरानुपलब्धि और सहचरानुपलब्धि । १. कार्यानुपलब्धि-जैसे, इस मुर्दे शरीरमें जान नहीं है; क्योंकि हलन-चलन आदि नहीं पाया जाता। यहाँ जीवनका कार्य हलन चलन आदिकी अनुपलब्धिरूप हेतुसे जीवनका अभाव सिद्ध किया गया है। २. कारणानुपलब्धि-यहाँ धूम नहीं है, क्योंकि आग नहीं है। धमका कारण अग्नि है। अग्निकी अनुपलब्धि रूप हेतुसे धूमका अभाव सिद्ध किया गया है। ३. व्यापकानुपलब्धि-यहां शिशपा नहीं है, क्योंकि वृक्ष नहीं हैं । शिशपा व्याप्य है और वृक्ष व्यापक है अतः व्यापक वृक्षके अभावमें व्याप्य शिशपाका भी अभाव होता है । ४. पूर्वचरानुपलब्धि-एक मुहूर्त में शकटका उदय नहीं होगा; क्योंकि कृत्तिकाका उदय नहीं हुआ। ५. उत्तरचरानुपलब्धि-भरणीका उदय अभी नहीं हुआ; क्योंकि कृत्तिकाका उदय नहीं हुआ। कृत्तिकाका उदय शकट से एक मुहूर्त पहले होता है और भरणीके उदयसे एक मुहर्त्तवाद होता है। अत: कृत्तिका शकटका पूर्वचर है और भरणी. का उत्तरचर है। दोनोंमें उसकी अनुपलब्धि है । ६. सहचरानुपलब्धि-इस तराजूका एक पलड़ा ऊँचा नहीं है; क्योंकि दूसरा पलड़ा नोचा नहीं है। तराजके पलड़ोंमें ऊंचा-नीचापना एक साथ रहता है । अतः एकके अभावमें दूसरेका अभाव सिद्ध किया गया है।
१. हेतुके प्रकार देखनेके लिए परीक्षामुखके अध्याय तीनके सूत्र ५७-६३ देखने चाहिए।
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